________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-गुरुवाणी:
नौ की लकड़ी नब्बे खर्च. मर गया तो भी खर्च. श्राद्ध करो, जीमन करो, उसे जलाओ, कितना लफड़ा, इससे तो जानवर अच्छे हैं, जीवित अवस्था में भी अपना सर्वस्व अर्पण करते हैं. कितना बेचारे मौन भाव से अपना सर्वस्व अर्पण करते हैं. कितना बड़ा बलिदान है उनका? मरने के बाद भी अपना तन देकर जाते हैं. चमड़ा देकर जाते हैं.
इन्सान क्या देता है? जीवित अवस्था में भी खतरनाक और मरने पर भी समस्या पैदा करके जाता है. यहां तो इन्सान बनके आये, देव बनने का प्रयास करें. इन्सानियत हमारे अन्दर में आ जाये. आज वह इन्सानियत हमारे अन्दर नहीं रही, जो किसी जमाने में थी. यह आर्य संस्कृति थी, सारी दुनिया को आदर्श देती थी, संस्कार देती थी, शिक्षा देती थी. अब सारी दुनिया हमें शिक्षा देने आती है. जरा विचार करना पड़ेगा, हमारी क्या दुर्दशा है. वैचारिक दुष्काल है. इस देश में बाहर का दुष्काल नहीं. बाहर का दुष्काल कभी खतरनाक नहीं होता. इन्सान के अन्दर विचार का दुष्काल आ गया. सदविचार का दुष्काल आ गया है. प्रेम का दुष्काल इतना भयंकर है, अन्तर से परमात्मा ही चला गया. डेड बॉडी लेकर हम घूम रहे हैं. मुर्दो की तरह हम चल रहे हैं. जीवन के अन्दर विकृति का दुर्गन्ध आ रहा है. जीवन सड़ चुका है. जीवन का जीर्णोद्धार करें, नव निर्माण करें, आत्मा को निर्मल और पवित्र बनायें. प्रेम का मन्दिर इस जीवन को बनायें. तब बिना आमन्त्रण ही परमात्मा आपके अन्तर में प्रतिष्ठित हो जायेंगे. मेरे शब्दों से सुगन्ध आने लग जाये. मेरा जीवन संसार को सुवासित बना जाये. मेरा जीवन चलता फिरता स्कूल जैसा बन जाये. अनेक व्यक्तियों को प्रेरणा देने वाला बन जाए.
जीवन का आदर्श हम उपस्थित करें, तब मैं समझू आपका वर्तमान सफल बना. तब भविष्य भी आपके लिए वरदान बन जायेगा. आज ये विषय यहीं रखेंगे. समय आपका हो चुका है. इस विषय पर कल फिर चिन्तन करेंगे. अपना रनिंग सब्जेक्ट है. दो तीन दिन बाद यह विषय पूर्ण होगा, उसके बाद अगले विषय पर विचार करेंगे. सूत्रकार ने अगला विषय बड़ा सुन्दर दिया. कहाँ रहना और किस प्रकार रहना. आपका मकान किस प्रकार का होना चाहिये? आज का यह मकान तो बीमारियों का जन्म स्थान है, किस प्रकार शिल्प से इसका निर्माण किया जाता था. मन्दिरों का निर्माण, हमारे धर्म स्थानों का निर्माण कितनी सुन्दर शिल्पकला के द्वारा होता था, जहाँ जाने से मन की शान्ति मिलती. वैचारिक शुद्धता मिलती. चित्त की एकाग्रता आती, ऐसा वास्तविक शिल्प का गणित था. शुद्ध शिल्प से बना हुआ यदि मन्दिर है, मस्जिद है, या गुरुदारा है. जहां त्रिज्याकार हो रेखाकिंत गणित के अनुसार, उसे शुद्ध शिल्पमय मन्दिर कहिये परमात्मा के केन्द्र में आप खड़े हो जाइये. आपको एक अनुभव बतलाऊं कितना भी आप को सिर का दर्द हो, सिर में बेचैनी हो, मन में चंचलता-व्यग्रता हो, जाकर के केन्द्र में खड़े रहिये, तीन बार भूमि के साथ मस्तक का स्पर्श नमस्कार करिये, दर्द चला जायेगा. आप करके देख लेना. परन्तु शिल्पमय मन्दिर चाहिये. यह गणित का और शिल्प का चमत्कार है,
279
For Private And Personal Use Only