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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गुरुवाणी लोगों को दिखाते रहे. क्षमावाणी पर पत्र लिखते रहे. क्षमापना पर्व मनाते रहे. अन्दर में क्या भरा है वह तो जाना नहीं. अगर क्षमा की भावना आती तो हमारी यह समस्या ही नहीं रहती. कोई समस्या नहीं रहती. यहां संसार भी स्वर्ग जैसा बनता. आपका जीवन चलता फिरता मंदिर जैसा बन जाता. परन्तु अफसोस है कि हम प्रभु के नाम को लेकर परमात्मा को बदनाम कर रहे हैं. जो सत्य है, वह तो सामने आएगा. प्रकाश के लिए किसी को ढोल नहीं पीटना पडता, कोई विज्ञापन नहीं देना पड़ता कि मेरा यह प्रकाश है. सारी दुनिया को नजर आएगा. जो सत्य है, वह सारी दुनियां को समझ में आ जाएगा, विज्ञापन की जरूरत नहीं. प्रेस पब्लिसिटी की नहीं. नारे लगाने की जरूरत नहीं. दुनियां बहरी नहीं है. अधी नहीं है, जो प्रकाश को न समझ सके. या सत्य की जानकारी उसे न मिले. किन्तु आदत से लाचार. साम्प्रदायिक दृष्टि का वह तुच्छ परिणाम है. आज हम भोग रहे हैं. दुनिया के हर धर्म में आज वह रोग व्यापक बन गया है. यह वायरस की बीमारी इतनी खतरनाक है. कोई इससे बच नहीं सकता. सारी दुनियां को आदर्श देने वाला आज कैसी बीमारी में फंसाया गया. यह कटुता, वैर विरोध की भावना बीमारी ही तो है, संवत्सरी तो मनाते हैं. प्रतिवर्ष पर्व आता है. प्रेरणा देकर चला जाता है. वह तो अतिथि है, मेहमान की तरह से है, उसका जो स्वागत होना चाहिए हम कर नहीं पाते, मात्र औपचारिता का निर्वाह कर लेते हैं. उसमें वास्तविकता नहीं मिलती, पर्व की आराधना कैसे करें? पार्श्वनाथ भगवान जिनका मोक्ष कल्याण पर्व नजदीक आ रहा है. उनके जीवन की घटना है. उन्ही का भाई पूर्व के 10-10 भावों के अन्दर क्षमापना के लिए उसके सामने गया. एक ऐसा ही प्रसंग था. पार्श्वनाथ भगवान का जीव अपने भाई के पास जो संन्यास लिए हुए थे और पंचाग्नि तप कर रहे थे, गया, वहां जाकर क्षमा याचना की कि मेरा व्यवहार आपकी आत्मा के दुख का कारण रहा है. मेरे निमित्त उस आत्मा को जो भी कुछ कष्ट हुआ हो मैं जाकर अन्तर शुद्धि के लिए क्षमापना करूं. पार्श्वनाथ भगवान का जीव निर्दोष था. अपराध उन्होंने कुछ भी नहीं किया, परन्तु ऐसी गलत धारणा भाई के अन्दर आ गई. भाई संसार से विरक्त हो गये. उन्होंने संन्यास ले लिया. पार्श्वनाथ भगवान का जीव वहां गया. जाकर क्षमायाचना की. क्षमायाचना के बाद, कैसा आवेश आया उसके अन्दर, अब आप सोचिये. उस आवेश का परिणाम कितना अनर्थकारी हुआ. कहना था, दोष लगे या ना लगे, स्वयं क्षमापना की भावना लेकर के गए. जाकर के हृदय पूर्वक उन्होंने अपनी क्षमायाचना की. उसका परिणाम मन के अन्दर ऐसा प्रचण्ड पैदा हुआ. भगवान के भाई जिन्होंने संन्यास ले लिया था. मन से संन्यासी नहीं बने थे. बाहर से कपड़ा ही बदला था. उन्होंने पत्थर उठा लिया और उनके माथे पर दे मारा. यह है कटुता का परिणाम, जिसके पात्र यहां पार्श्वनाथ बने. उन्हीं के भाई कमठ बन कर फिर बैर विरोध की भावना लेकर आए. उसके बाद परमात्मा पर क्या उपसर्ग News । 267 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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