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- गुरुवाणी
किया वह तो इतिहास के अन्दर स्पष्ट है. परन्तु उन्होंने अपना नैतिक कर्तव्य कभी नहीं छोड़ा. अपने आचार को कभी छोड़ा ही नहीं.
मोहम्मद साहब एक बार समुद्र में स्नान करने गए, वहां पानी में एक जहरीला बिच्छ्र डूब रहा था. उन्होंने उसे हाथ से उठाया, बिच्छू का स्वभाव है, उसने डंक मारा, जिससे इनका हाथ कांप गया और वह वापिस पानी में गिर पड़ा. उन्होंने फिर उठाया उसने फिर डंक मारा, दो चार बार इस प्रकार की घटना हुई. साथियों ने कहा - जाने दीजिए. यह डूबना चाहता है, डूबने दीजिए. बार-2 आपको डंक मार रहा है. मोहम्मद पैगम्बर ने कितनी सुन्दर बात कही - यह पशु है, जानवर है. इसमें दिल और दिमाग नहीं. परमात्मा ने सोचने समझने की शक्ति नहीं दी. यह कोई अपना अपराध लेकर आया है, अपराध मान रहा है, इस योनि के अन्दर, परन्तु फिर भी कितनी बड़ी विशेषता है कि यह अपना स्वभाव नहीं छोड़ता. डंक मारना इसका धर्म है, स्वभाव है. मैं इन्सान हूं, बचाना मेरा धर्म है. मैं अपना धर्म कैसे छोड़ दूं?
बिच्छू अपना धर्म डंक मारना नहीं छोड़ता तो मैं अपना धर्म बचाना क्यों छोड़ दूं? जीना भला है उसका, जो जीता है दूसरों के लिए. मरना भला है उसका, जो जीता है खुद के लिए. यहां तो परोपकारमय जीवन होना चाहिए. इस प्रकार की भावना अपने में रखनी चाहिए. यह जितनी बार डंक मारेगा, मैं इसे बचाकर रहूंगा. संकल्प था, दुनिया के हरएक धर्म इसको आज मानने को तैयार हैं. बाइबल जैसा ग्रन्थ भी प्रेम और मैत्री का सन्देश देने वाला है. न्यू टेस्टामैंट जहां पर लार्ड क्राइस्ट कहते हैं - दयालु और प्रेम से परिपूर्ण आत्मा के लिए स्वर्ग का द्वार खुला है. कहीं प्रतिबन्ध नहीं. बुद्ध की मैत्री
और करुणा देखिए. महावीर का विश्व मैत्री भाव देखिए. जगत के प्राणिमात्र के प्रति उनका हितचिन्तन आप देखिए. अगर एक बार उस चिन्तन पर विचार किया जाए तो व्यक्ति जीवन की समस्त चिन्ताओं से मुक्त बन जाए. पर आज हमारे पास उस चीज का अभाव है.
संत्यागोऽवर्णवादश्च साधुषुः
"सर्वत्र निन्दा वर्णवादः साधुषु." महान पुरुष श्री हरिभद्र सूरि चार-चार वेद के ज्ञाता थे. वे चितौड़ राणा के राज पुरोहित थे. बाद में वे जैनाचार्य बने. चौदह सौ चवालीस ग्रन्थों के रचियता हुए. महान दार्शनिक विभूति बने, उनका यह कथन है इस सूत्र के द्वारा, कि अगर धर्म में प्रवेश करना है, जीवन के अन्दर अपनी जुबान पर लगाम पहले लगाओ. इन्द्रियों पर पहले नियन्त्रण प्राप्त करो. जहां तक आपके पास व्यावहारिक ज्ञान नहीं, वहां तक आत्मा के विषय में पूर्णता नहीं मिलेगी. उसके बाद आत्मा, परमात्मा या मोक्ष की चर्चा करो, कोई व्यक्ति जिसने प्राइमरी एजुकेशन भी नहीं लिया, उसे यदि यूनिवर्सिटी में एडमिशन दिला दें और वह रोज लैक्चर सुने, तब भी वह पेपर नहीं करेगा.
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