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-गुरुवाणी:
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में जो भी पाप जागत हो गए, उसकी उपमा दी गई है. खेत के अन्दर, तालाब के अन्दर, गर्मी में जैसे दरार पड़ जाती हैं परन्तु जैसे ही चतुर्मास आया एकरूपता हो जाती है. सब कुछ समान बन जाता है. उसी तरह से आत्मा और धर्म के बीच में दरार पड़ गई. चातुर्मासिक प्रतिक्रमण के द्वारा, ऐसा प्रयास किया जाता है जिससे आत्मा में एकता, समानता आ जाती है. __परन्तु यदि चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में भी आप सावधान नहीं हुए तो सांवत्सरिक प्रतिक्रमण आता है. ये चार प्रतिक्रमण पूरा हुआ. जैसे-जैसे कषाय की मात्रा बढ़ेगी, कषाय की मात्रा बढ़ने का परिणाम धार्मिक अनुष्ठान के अन्दर, क्रियाओं के अन्दर ऐसी व्यवस्था रखी गई है कि विशेष रूप से प्रार्थना या कार्योत्सर्ग किया जाएगा. परन्तु संवत्सरी वार्षिक पर्व सबसे बड़ा पर्व है, इससे बढ़कर वर्तमान काल के अन्दर कोई पर्व नहीं है. जैन परम्परा में यह पर्व आत्मा शुद्धि का पर्व है. मैत्री का पर्व है. पर्व का क्षण है. जितने भी भारत के अन्दर प्रचलित पर्व हैं. उन्हें प्रेरणा मिलती है. उनमें यह संपूर्ण पर्यों का प्राण माना गया है. यदि मैत्री नही, प्रेम नहीं तो परमात्मा की बात आप क्यों करते हैं. वह कभी मिलने वाला नहीं प्रेम के अभाव में फिर परमात्मा की बात आप क्यों करते हैं? क्योंकि परमात्मा ऐसे नहीं मिलता. प्रेम और मैत्री के अभाव के अन्दर हमेशा धर्म का दुष्काल मिलेगा. दुनिया के हर धार्मिक सिद्धांत के अन्दर ये उसकी मौलिक मान्यताएं हैं.
ऋग्वेद के अन्दर लिखा है “भगवान! तू मुझे ऐसी दृष्टि प्रदान कर, मैं सभी आत्माओं को मित्रवत् देखू" यह प्रार्थना की गई है कि पड़ोसियों के साथ. जगत् के साथ कैसा व्यवहार करता है. बाइबल के अन्दर लार्ड क्राइस्ट ने शत्रु-मित्र का भेद-भाव कर कहा – “स्वर्ग में जो द्वार है, वह उन आत्माओं के लिए खुला है, जिनका हृदय प्रेम और दयालुता से भरा है." आप विचार कर लीजिए. जहां प्रेम से परिपूर्ण आपकी आत्मा होगी, दयालुता से परिपूर्ण आत्मा होगी, वहां पर स्वर्ग का द्वार खुला मिलेगा. स्वर्ग में आपको आमन्त्रण मिलेगा.
दुनियां के हर धर्म में आपको ये सिद्धांत मिलेंगे. जैन दर्शन में तो सर्वत्र ही मैत्री है. यदि वह मैत्री नहीं रही तो इसका परिणाम सबसे भयंकर हमें भोगना पडेगा. आप हम भाग रहे हैं. मैंत्री की बात करने वाले सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करने वाले दशलक्षणी पर्व को आधार करने वाले हम सब का यह आराधना या नाटक हुआ. यदि हम मन में कटुता रखें, बैर रखें, हदय के द्वार बन्द रखें तो वह किस प्रकार की आराधना हई? कैसी साधना हुई?
भगवान महावीर का कहना है "जो व्यक्ति अपने अन्तर हृदय का द्वार बन्द कर ले किसी भी एक व्यक्ति के लिए, तो गौतम, मोक्ष का द्वार उस आत्मा के लिए बन्द रहता है." किसी भी व्यक्ति के लिए यदि आपने अपना द्वार बन्द कर लिया तो प्रभु का द्वार आपके लिए कुदरती तौर पर बन्द हो जाएगा. आज तक हम प्रेम का नाटक करते रहे.
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