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गुरुवाणी
वह एक धक्का लगाता है, एक थप्पड मारता है और सब संस्कार. यहां से जो प्राप्त किया उसे वह लूटकर ले जाता है. सामने दिखता है कि लक्ष्मी आ रही है. नोटों की बरसात हो रही है. सब भूल गये कि उस नशे में क्या सुना था? क्या किया था? मेरा कर्तव्य क्या था? वहां जाते ही सब कुछ भूल गये. सारी मेहतन पानी में डूब जायेगी.
जैसे ही दुकान पर गए, लोभ आया, वह उस सब को खत्म कर देगा. कोई व्यक्ति ऐसा वैसा मिल गया तो क्रोध का आवेश आएगा और तन मन में आग लग जाएगी. सारे सद्विचार जल कर राख बन जाएंगे. एक क्षण लगता है, सारे दिन हम वहां पर लुटाते हैं, कमाई है. मुश्किल से आप एक घण्टा, पुण्यशाली हैं कि आ जाए. परमात्मा की वाणी श्रवण करने को मिल जाए. मार्गदर्शन मिल जाए. परन्तु उसका परिणाम क्या? 23 घण्टे तो लुटाना है. जन्मे संसार में पुण्य लूटने के लिए हैं. स्वयं को लुटाकर नहीं जाना है. संसार से पुण्य लूटकर के जाना है. आज तक हम लुटाते आए. आत्मा के वैभव को लुटाते हैं. सारी पवित्रता को लुटाते रहे. संकल्प करो कि मुझे संसार को लूटकर ले जाना है, स्वयं नहीं लुटना.
आज तक संसार में मैं मरता रहा. संसार कायम रहा जिन्दा रहा, परन्तु अब ऐसा मरूंगा कि मेरे मन से संसार मर जाए. जब तक जिन्दा रहूं, आबाद रहूँ, ऐसी स्थिति में चला जाऊं कि मेरा मरण न हो. इसीलिए सारा प्रयत्न चल रहा है और किसी कारण कोई प्रयास नहीं. हमारा ध्यान उस तरफ नहीं गया. भाव और भाषा का सम्बन्ध अटूट है. भाषा का विवेक यदि नहीं रहा और उसमें निन्दा आ गई तो दुर्भाव को जन्म देगी. संघर्ष करेगी. बड़ा भयंकर संघर्ष होगा. निन्दा आगे चल कर मौत का कारण बनती है. कटुता और वैर की परम्परा को जन्म देती है.
जितने भी कोर्ट में केस चलते हैं उसके अन्दर देखिए. गहराई में जाकर देखें तो वाणी के अन्दर विवेक का अभाव आपको नजर आएगा. वही क्लेश का कारण बना है. जितने मर्डर होते हैं, हत्याएँ होती हैं, दुनिया के अन्दर, उन सैकड़ों मृत्यु का कारण क्या है? वाणी के अन्दर विवेक का अभाव ही वह कारण है.
ये जितनी भी घटनाएं रोज घटती हैं. स्त्रियों को अपघात आदि परुषों में इस का विचार कहां से पैदा होता है? उसका कारण अगर आप जानने का प्रयास करें तो आपको मालूम पड़ जाएगा कि घर में किसी न किसी व्यक्ति ने आपको कुछ गलत सनाया है. आप सहन नहीं कर पाए, और उसके परिणाम स्वरूप आपको मौत का रास्ता अपनाना पड़ा. संघर्ष का रास्ता स्वीकारना पड़ा या और कोई गलत रास्ता लेकर उसे काम करने का आपने संकल्प किया. यह दुश्मन है इस का मैं सफाया कर दूँ, यह निश्चय किया. इस प्रकार दुर्भाव ही क्लेश का कारण बनता है.
बोलने में यदि जरा सा दुर्भाव आ गया तो यह दुर्भाव आपके भावों को नष्ट कर देगा. बोलने में बड़ी गम्भीरता होनी चाहिए. हमारे यहाँ आगम सूत्रों में बड़े सुन्दर ढंग से बताया।
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