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गुरुवाणी
गया कि कैसी गम्भीरता चाहिए. कदाचित् किसी व्यक्ति का पाप भी नजर आये. आंखों से देखा हो तो भी गंभीर श्रावक पाप का प्रकाशन नही करेगा. वह यही समझेगा कि व्यक्ति कर्मों के आधीन है. पूर्व कर्म के कारण यह व्यक्ति गलत रास्ते पर चला गया. एकान्त में मित्र दृष्टि से उसकी पात्रता देख कर उसे उपदेश देगा. यदि पाप का प्रकाशन करता है, तो अनर्थ का कारण बनता है..
किसी व्यक्ति के मर्म रहस्य को प्रकट करना बहुत बड़ा पाप माना गया है. क्योंकि वह भी पर निन्दा के अन्तर्गत आ जाता है. आप बाहर चर्चा करेंगे तो वह किसी की आत्मा को आघात लगेगा. उसके अन्दर दर्द पैदा रहेगा. न जाने उसका क्या गलत परिणाम आ जाएगा. कई बार गलत घटनाएं हो जाती हैं. आगम के अन्दर इस विषय की बड़ी बात आती है.
संयोग ऐसा था, घर के अंदर पैसा था नही, परिवार के लोग बड़े उदासीन थे, भाई सब अलग हो गए. पैसे की माया है. गुड़ है तो मक्खी आएगी. पैसा है तो परिवार में एक नहीं, दस पैदा हो जाएँगें. यदि प्रारब्ध नहीं है तो आप जगत में घूमते रहो, कोई पूछने वाला नहीं. स्वार्थ से भरा हुआ संसार है यह. भगवन्त ने अपने शब्दों से कहा. संसार कैसा है इसका परिचय दिया.
"दुख रूपे दुखानुबन्धे दुखानुफले” यह संसार स्वयं दुख रूप है. दुख का अनुबन्ध कराने वाला. दुख की परंपरा उपस्थित करने वाला है. दुख को परिणाम या फल के रूप में देने वाला है.
स्वयं संसार ही जब दुख रूप है. हमारी साधना संसार के दुःखों से मुक्त होने के लिए है. अगर आप यहाँ सुख की कल्पना करते हैं, तो यह आपका भ्रम है कि मुझे संसार में सुख मिलेगा. सुख मिलने वाला नहीं. दुख से हम घबराते हैं. यह हमारी कायरता है, बहुत बड़ी कमजोरी है. भगवान ने दुख का स्वागत किया और आप तिरस्कार करते हैं. संत कबीर के यहां एक दुखी व्यक्ति आया और बोला “भगवन्, बहुत दुखी हो गया. सारा संसार मैने देख लिया और सारे परिवार का परिचय कर लिया. वैराग्य आ गया हो, ऐसा भी नही. आपका आशीर्वाद लेने आया हूँ. कोई ऐसा मंगल आशीर्वाद दीजिए. जिससे मेरा दुख चला जाये और सुख की प्राप्ति हो.
कबीर ने कहा-“मैं आशीर्वाद देता हूँ कि तू और दुखी हो जा." संत का शब्द क्या था, वज्रपात था. वह व्यक्ति चरणों में गिर गया और बोला “भगवन्! आपके मुख से निकला शब्द हमेशा साकार होता है, लोगों की ऐसी मान्यता है. सदाचारी आत्मा के मुख से जो निकला हो, वह शब्द साकार बनता है. इसलिए इस गरीब पर दयादृष्टि रखकर कुछ कीजिए. आपने जो शब्द कहा वह तो आघात है, वज्रपात है. भगवन्! दुखी हूं और इस घायल को यदि आप मारें तो आपकी इच्छा है. मैं तो संसार से घायल हो कर आपके चरणों में आय दुख और दर्द लेकर आया हूं. भगवन्, और कुछ मुझे नही चाहिए. केवल आपकी कृपा चाहिए."
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