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गुरुवाणी
ऐसे कटु शब्दों को भावपूर्वक ग्रहण करेगी. मिठाई की तरह से स्वादपूर्वक ग्रहण करेगी. कि मेरे ऊपर बड़ी कृपा है, गुरु महाराज की. मेरे माता-पिता की मेरे हित के लिए, कल्याण के लिए कह रहे हैं. यह गाली नहीं ये आशीर्वाद हैं, यह समझकर के जो चले तो समझना वह खानदानी कुलीन शिष्य है. वही खानदानी सुपुत्र है. जो माता - • पिता की गाली को आशीर्वाद मानकर के स्वीकार करे.
यह हमारा व्यवहार. मधुरम् ! यह दूसरा गुण है. मधुरता होनी चाहिये, कर्कशता होनी नहीं चाहिए. शब्द फीका नही होना चाहिए, स्वाद पूर्ण होना चाहिए. शब्दों के अंदर ऐसी ताकत होनी चाहिए, उन शब्दों को ग्रहण करते ही व्यक्ति आपके अनुकूल बन जाए. और आपके प्रति सद्भावना उत्पन्न करने वाला बन जाए.
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निपुणम्. तीसरा गुण. वाणी के अन्दर निपुणता होनी चाहिए. बुद्धिमत्ता होनी चाहिए. मूर्खो की तरह नहीं बोलना. समझदारी पूर्वक बात करना. विचार के अन्दर गहराई चाहिए. तब जाकर के वह वाणी सफल बनती है. और उसकी प्रतिक्रिया बड़ी सुन्दर होती है. यह नहीं कि बुद्ध बन कर सुन आए और बिना सोचे-समझे बक कर के आ गए.
बोलने में और बकने में बहुत अन्तर है. सोच करके विचार पूर्वक बोला जाता है. बिना सोचे, बिना विचारे बका जाता है. हम बकने के लिए पैदा नहीं हुए. बोलने के लिए. वाणी के अंदर निपुणता, कुशलता आनी चाहिए. व्यवहारिक बुद्धि उसके अन्दर होनी चाहिए. तीक्ष्णता होनी चाहिए. गांधी जी अफ्रीका की यात्रा में थे. उस जमाने के अंदर अंग्रेजो का वहां इतना अत्याचार था, किसी भी भारतीय के लिए अपने गौरव को टिकाए रखना बहुत मुश्किल था. ब्लेक बूट की तरह हमारे साथ व्यवहार किया जाता था. तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता था. जिस कंपार्टमेंट में रेल के अंदर अगर अंग्रेज यात्रा करते हों तो कोई भी भारतीय उसमें बैठ नहीं सकता था. एशियन बैठ नहीं सकता था. अफ्रीकन उसमें चढ़ नहीं सकता. चलने के लिए फुटपाथ अलग, होटल अलग, रेलवे अलग. कंपार्टमेंट सीट अलग. घृणा की दृष्टि से देखा जाता था.
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गांधी जी बैरिस्टर थे; टिकट लिया फस्ट क्लास का और बैठ गए. फस्ट क्लास में बैठे. कंपार्टमेंट एकदम खाली था बैठ गए. अगले स्टेशन पर कोई अंग्रेज़ चढ़ा. एक साथी उसका और चढ़ा. बीच में गांधी जी और दोनों साइड दोनों अंग्रेज बैठ गए. उनके मन में बड़ी घृणा उत्पन्न हुई कि यह इन्डियन कहां से आ गया.
उतरने के लिए कुछ इशारा किया, गांधी जी कुछ बोले नहीं. वह तो विचार में पहले से ही बड़े दृढ़ थे. अपने विचार के पक्के जिद्दी थे. जो सत्य है, उस का आग्रही तो होना ही चाहिए. बाल्यकाल से ही यह संस्कार लिया. बैठे रहे. गाड़ी चालू हुआ. चालू गाड़ी में उतरना कैसे दायें हाथ की तरफ जो अंग्रेज बैठा था - उस अंग्रेज ने देखकर के घृणा की दृष्टि से कहा यू डैमफूल. लैफ्ट साइड. बोलने में भी जरा घृणा प्रकट करके तिरस्कार की दृष्टि से गांधी जी को कहा, यू डैमफूल.
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