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%3Dगुरुवाणी
साधु का शब्द था. जैसे ही वह घर गई, एक दो दिन निकला. अचानक कोई निमित्त । बना. उस दिन निमित्त में सास गई, आ गई बोलने के लिए.
लकड़ी का टुकड़ा मुंह में. अब मुंह में टुकड़ा लिया जाये. तो बोला जाए नहीं. एक अक्षर बोली नहीं. ऐसे दो बार तीन बार हुआ. प्रसंग के अन्दर वह सास के सामने एक अक्षर बोली नहीं. सास के मन में एक दिन एक भाव आया. यह बहू कितनी खानदानी हैं. मैं इतना गर्म हो जाती हूं. इतने आवेश में आती हूं. कई बार नहीं बोलने की बात. जैसी बोल भी देती हूं. अपनी बच्ची समझ कर परन्तु बडे गजब की बात है. मेरे सामने बोलती नहीं. कितना विवेक कितनी मर्यादा रखती है, इसकी मर्यादा कितनी सुन्दर.
सास का हृदय परिवर्तन हो गया. और बड़े प्यार से बड़े, वात्सल्य से अपनी बच्ची की तरह व्यवहार शुरू कर दिया. हमेशा के लिए कषाय का अन्त हो गया.
उसके पति ने पूछा - भई क्या बात है, घर के अन्दर यह क्या चमत्कार हुआ? मेरी मां अब तेरे साथ कैसा व्यवहार करती है? पूरे घर का वातावरण कितना सुन्दर बन गया, कहा-साधु-सन्त ने आशीर्वाद दिया. मुझे एक चीज दिया.
पूछा क्या? दिखाया तो एक लकडी का टुकड़ा. सन्त ने कहा था.-सासू बोले तब यह मुंह में डाल लेना. यह बहुत बड़ा वशीकरण मन्त्र है. सास वश में हो जायेगी. मैने प्रयोग करके देखा. जब-जब वह बोलती, मैं मुंह में डाल लेती, मुंह में डालती और चुप रहती, क्योंकि फिर तो बोला जाये नहीं. मेरी बात समझ गये. नहीं बोले.
गाली आवत एक है, जावत होत अनेक,
जो गाली जावे नही, तो रहे एक ही एक। चूल्हे के अंदर यदि आप लकड़ी नही डालेंगे तो आग स्वयं बुझ जाएगी. आपने मुझे अपशब्द कहा और साथ मे मैं यदि अपशब्द का व्यवहार करूं. उसका आना-जाना शुरू हो जाए तो परंपरा बढ़ेगी. यदि आप कभी बोलें और मैं चुप रहूं तो परिणाम वही आएगा, आप थक जाएंगे. सुनने वाला कभी थकेगा नहीं. बोलने वाला ही थक जायेगा, हमेशा ही परिणाम सुन्दर आएगा. मैं कहता हूँ हरेक के घर में यह टुकड़ा तो रखना ही चाहिये. जब-जब प्रसंग आ जाए तो टुकड़ा मुंह के अंदर व एक अक्षर बोलने का नहीं, उसे आप देखना आपकी आत्मा के लिए आशीर्वाद है. बड़े कुछ भी कहें. भगवान महावीर का एक शब्द है. महानिषिथ-सूत्र में कदाचित् गुरु आवेश में आ जाये. गुरु को उत्तेजना आ जाये. कोई ऐसा उपाय देखने में आया है?
गौतम स्वामी ने प्रश्न किया - भगवन! कुलीन और खानदानी शिष्य किसको कहा जाए? कुलीन और खानदानी पुत्र किसको कहा जाए? भगवान ने कहा-उसकी यह पहचान - कड़वा से कड़वा शब्द गुरु का हो या माता-पिता का हो. और उसे मिठाई की तरह से, कलाकन्द की तरह खाकर स्वाद का अनुभव करे. प्रसन्नता प्रकट करे, असल खानदानी, कुलीन शिष्य होगा. मां बाप की अगर सच्ची संतान होगी तो मौन रखेगी. और
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