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गुरुवाणी
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गांधी जी चुपचाप बैठे रहे. स्टेशन आ ही रहा था. उतरने की तैयारी थी. गांधी जी ने अपना मौन भंग किया, वाणी में कैसी कुशलता होनी चाहिए. एक बार बोले और सब चुप हो जाएं.
गांधी जी ने कहा - बिल्कुल सही कहा. आय एम सिटिंग बिटविन टु डैमफल दो बेवकूफों के बीच में मैं बैठा हूं. उसके बाद अक्ल आई कि. ये तो मिस्टर गांधी हैं. कहने में, भाषा में वह विवेक होना चाहिए, बुद्धिमत्ता उसमें होनी चाहिए कि सुनने वाला भी एक बार उसमें डूब जाए. ____ अफ्रीकन कांग्रेस के अंदर एक बार ऐसा संयोग. डेमोक्रेटिक पार्टी विजयी बन गई. वहां दो ही पक्ष हैं. अपने भारत की तरह वहां स्थिति नहीं, बरसात के समय आप जानते हैं, मेंढक पैदा होते हैं. यहां रोज नई पार्टियां पैदा होती है. देश सेवा किसी को नहीं करना है, वहां तो मजे चाहिए. बिना मज़दूरी किए नफा चाहिए. बिना पसीना उतारे पैसा मिलना चाहिए. यह हमारा लक्ष्य बन गया.
वहां सिर्फ दो पार्टी हैं वर्षों से. जहां आप देखिए दो ही पार्टी या तो रिपब्लिकन या डेमोक्रेटिक. दोनों के चिन्ह हैं-एक का गधा, एक का हाथी. रिपब्लिकन का हाथी चिन्ह है. संयोग ऐसा वहां डेमोक्रेटिक पक्ष विजयी बन गया. रिपब्लिकन हार गई. प्रेसिडेन्ट उनका आया तो सैनेट का उद्घाटन था. उस दिन विरोधी पक्ष के जो नेता थे, औपचारिक दृष्टि से भाषण के लिए कहना पड़ा, विरोध पक्ष को भी. सैनेट उद्घाटन का पहला ही दिन था. विरोध पक्ष का नेता बड़ा होशियार बड़ा कुशल था. उसने निशाना छोड़ा, रिपब्लिकन था, उसे मालूम था ये डैमोक्रेटिक वाले हैं. उनका बहुमत है. उन्हीं की सरकार है. प्रेसिडेन्ट उनका है. खड़े होते ही उसने कहा - मैं यहां पर क्या भाषण दूं. आधे से ऊपर तो गधे हैं. इन गधों को क्या कहूं. उनका चिन्ह गधा है. शब्द बोलते ही स्पीकर ने कहा – नही, डू नोट स्पीक, बैठा दिया. कहा - आप अपने शब्द वापिस लीजिए, ये शिष्टाचार के शब्द नहीं हैं. संसद में बोलने लायक भाषा नहीं है. यह तो यहां के सैनेट के सदस्यों का अपमान है. या तो अपने शब्द वापिस लें या क्षमा याचना करें.
पहले ही दिन “प्रथमग्रासे मक्षिकापातः” पहला ही ग्रास लिया और मक्खी गिरी. कितना होशियार व्यक्ति था, बड़ा बुद्धिमान, अपनी बौद्धिकता का परिचय दिया उसने. कहा-रपीकर महोदय. अपने शब्द वापिस लेता हूं. यहां आधे गधे नहीं हैं. समझ गए मेरी बात इसका मतलब आधे तो हैं ही. स्पीकर ने कहा शब्द वापिस लीजिए. ले लिया. शब्द वापिस ले लिए पर आधों को तो गधा बनाकर ही गया.
पहले दिन ही उसने अपना बौद्धिक परिचय दिया. व्यक्ति में ऐसी कुशलता होनी चाहिए.
हमारे आचार्य हेमचन्द्र सूरि जी जब राजदरबार में पधारे, वहां पर बहुत बड़े-बड़े विद्वान् पण्डित थे. उनका आदर सम्मान और प्रतिभा देखकर के, पण्डितों के मन में ईर्ष्या आई. एक पण्डित ने ज़रा कह दिया - उनके आगमन पर पाटन की घटना है. सम्राट् सिद्धराज
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