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-गुरुवाणी:
मौन के अन्दर अद्भुत साधना का एक प्रकार है. मौन का एक अपूर्व रहस्य है. इसीलिए विचारक पुरुषों ने कहा, भाषा के आठ गुणों में सर्व-प्रथम स्तोकम्. मौन का महत्त्व दिया. यदि बोलना पड़े तो अति अल्प स्तोकम् का मतलब है बहुत कम. अल्पम्. ज़रूरत से ज्यादा नहीं. वैर से कटुता से संघर्ष से आपका रक्षण हो. __ मैं सारी चीजें आपको कल समझाऊंगा. इसके बाद का जो मधुर, निपुणम्, कार्य पतितम्, अतुच्छम्, गर्व रहितम्, पूर्व संकलितम्, धर्म संयुक्तम्, -- ये भाषा के बड़े मधुर गुण हैं. एक बार इन गुणों को यदि आप समझ लें. तो आपकी भाषा परिष्कृत हो जाएगी. ___कैसा पानी फिल्टर आता है, पीने पर प्यास बुझा दे. यह भाषा भी छान करके फिल्टर होकर के आए जो प्यास बुझा दे. उसके अन्दर जरा भी विकार के कीटाणु न रहें, ज़रा भी वाइरस न मिलें, वैर विरोध के.
यदि आपकी वाणी का व्यवहार इस प्रकार का हो, तो यह व्यवहार आपको वहां तक पहुंचाने में मदद करेगा. पर्युषण पर्व की आराधना आपकी सफल बना देगा. ___भाषा में नियन्त्रण चाहिए. मैं इस विषय को समझाऊंगा. अब समय हो चुका है, आज इतना ही.
“सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्वधर्माणां जैनं जयति शासनम्"
___ जब-जब विचारों में पाप का प्रवेश हो, तब · तब यह गहन चिन्तन करना कि मैं प्रति पल मृत्यु की ओर आगे बढ़ रहा हूँ. कदम-दर-कदम मेरी जीवन-यात्रा मौत की ओर हो रही है. मेरे पापों के क्या दुष्परिणाम होंगे? मृत्यु का चिन्तन पाप मय प्रवृत्ति को विलम्बित करेगा और इस प्रकार सम्भव है आदमी पाप से बच जाय.
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