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गुरुवाणी
आठ गुणों का चमत्कार
परम कृपालु भगवन्त श्री हरिभद्रसूरि जी महाराज ने जीव मात्र के कल्याण की मंगल भावना से इस धर्मबिन्दु सूत्र की रचना की किस प्रकार से साधना के माध्यम से स्व की प्राप्ति कर अनादि कालीन वासना से आत्मा मुक्त बने स्व और पर का भेद विज्ञान किस प्रकार से व्यक्ति की जानकारी में आए. वह सारा ही मंगल परिचय इन सूत्रों के द्वारा दिया गया है.
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जीवन व्यवहार का संपूर्ण परिचय धार्मिक माध्यम से दिया है. व्यवहार को किस प्रकार धर्म प्रधान बनाया जाए, उसकी सारी रूपरेखा इन आचार सूत्रों से उन्होंने बतलायी. शिष्ट और सज्जन व्यक्तियों का आचार किस प्रकार होना चाहिए ? आपके व्यवहार से, आपकी वाणी से आपकी अन्तर दशा का सहज में परिचय मिल पाएगा.
सर्वप्रथम आचार शुद्ध होना चाहिए तब जाकर के आत्मा का शुद्धिकरण किया जा सकता है. इसलिए आपके आधार का परिचय, धार्मिक दृष्टिकोण से, सामाजिक दृष्टिकोण से, आरोग्य की दृष्टिकोण से, सब प्रकार से दिया गया है.
कल जिस पर आपने विचार किया जो जगत् के अन्दर सर्व व्यापक है. कोई व्यक्ति विरला ही इसमें से बचा होगा. यह इतना भयंकर आत्मा का प्रबल शत्रु है. बीमारी का यह मुख्य कारण है किस तरह से इस बीमारी से बचा जाए आत्मा के परम आरोग्य को प्राप्त किया जाए आपकी आत्मा का शुद्धिकरण किस प्रकार से संभव हो, वह
उपाय बतलायाः
"सर्वत्र निन्दासंत्यागो ऽवर्णवादश्च साधुषु"
जगत् की सबसे बड़ी बीमारी है, सर्वव्याप्त बीमारी है और यह कीटाणु बड़ा खतरनाक है. यह शरीर ही नहीं अपितु आपकी आत्मा को बरबाद करके रख देता है आत्मा के सारे गुणों को मूर्च्छित करके रखता है. जगत् की आत्माओं के साथ जो प्रेम का संबंध है उसका विच्छेद करता है नाश कर देता है.
इसलिए भगवान ने कहा कि जो सत्य भी हो. कहने जैसा भी हो, परन्तु यदि सामने वाले व्यक्ति में उसके ग्रहण की पात्रता न हो, वहां मौन रहना ही श्रेष्ठकर है, नहीं तो वह कषाय और क्लेश का कारण बनता है.
हर व्यक्ति को उपदेश देने का अपना अधिकार नहीं. जगत् में किसी को सुधारने के लिए नहीं आए. अपने को सुधारने के लिए आए. हमारे आचरण को प्रेम पूर्वक प्रेरणा से यदि कोई व्यक्ति प्राप्त कर ले, तो बड़ी अच्छी बात है. परन्तु लोगों की आदत है
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