________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-गुरुवाणी
दिया था. छदमस्थ पर्याय में मौन पूर्वक धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान में रहे. उसके बाद आत्मा जगत् की प्राप्ति हुई तब जगत् कल्याण के लिए बोले.
मौन का बड़ा महत्त्व है. मौन से चिन्तनबल, विचारबल बढ़ेगा, चिन्तन की गहराई मिलेगी.
हमारे एक महात्मा चातुर्मास में आए, आप जैसे सदभाव वाले व्यक्ति थे. बड़ा आग्रह किया. परन्तु मुनिराज ऐसे पवित्र थे, मौन रखते, भाषा का संयम. बोलते नहीं. उन्होंने पहले ही कह दिया मैं चार महीने मौन रखूगा. पर चला नहीं. लोगों ने आकर गड़बड़ी पैदा की. बहुत आग्रह किया कि आज चतुर्मासी चौदस है, आज तो चतुर्मास प्रारम्भ हो रहा है. दो अक्षर आप बोलिए. हम निर्दोष हो जाएं. साधु आचार तो है. उपदेश देना, यह साधुओं का कर्तव्य है. परन्तु मौन की भाषा में भी बहुत कुछ कहा जाता है.
भगवान महावीर निष्क्रिय नहीं रहे. साढ़े बारह वर्ष तक मौन की भाषा में जगत् को उपदेश दिया. उनके कार्य से, उनके चलने से, प्रत्येक क्रिया से लोगों को प्रेरणा मिली. मौन उनकी भाषा थी.
साधने कह दिया ठीक है यदि आपका इतना आग्रह है लिख करके दे दिया चतर्मासी चौदस पर मैं जरूर आऊंगा और संयोग बराबर चतुर्मासी चौदस को आए. आप जैसे भद्र लोग थे, आकर बैठे. महाराज ने मंगलाचरण किया. संघ का आग्रह कभी तिरस्कार किया नहीं जाता. हमेशा किसी की सद्भावना का आदर करना चाहिए. यह भी एक शिष्टाचार है. नहीं तो लोक विरुद्ध होगा. इस सूत्र में बतलाया गया. ऐसा लोक विरुद्ध कार्य नहीं करना जिससे अप्रीति उत्पन्न हो जाए. अभाव उत्पन्न हो जाए. बिना कारण मानसिक क्लेश का कारण बन जाए. ऐसा कार्य नहीं करना.
महाराज ने लोगों की सदभावना को देखकर के इतना ही कहा. पहला दिन था चतुर्मासी चौदस का. उस दिन उन्होंने यह कहा - एक प्रश्न किया, जितने भी लोग बैठे हैं, उनसे कहा कि भाई आपके आग्रह से मैं आया हूं. मुझे आज कुछ नहीं कहना है. मंगलाचरण के बाद एक प्रश्न पूछना है. यदि प्रश्न पूछने में उत्तर सन्तोषप्रद होगा तो मैं प्रवचन दूंगा, नहीं तो मौन रहूंगा.
लोगों ने कहा - बड़ी खुशी से पूछिए.
महाराज ने पूछा – आत्मा, परमात्मा और मोक्ष में आपका विश्वास है. सब लोग कहने लगे - महाराज क्या बात करते हैं? पूरा विश्वास है. सबने हाथ ऊँचा किया, बिना विश्वास के यहां आए कैसे? सब को विश्वास है. __ महाराज ने कहा - अब मुझे कुछ बोलना ही नहीं है, जो मुझे समझाना था, वह तो आपको आता है, जो विश्वास पैदा करना था, वह तो पहले से ही आता है. मैं बोलकर क्या समय नष्ट करूं, मेरा काम हो गया. सर्व मंगल कर दिया महाराज ने.
-
-
-
217
For Private And Personal Use Only