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%3-गुरुवाणी
देते हैं. छाती खोलकर, सीना तानकर खड़े रहते हैं. गोलियों की बरसात में प्राण की आहुति दे देते हैं. शब्द में वह करामात है. ___ कई शब्द ऐसे होते हैं, अगर बाजार में बोल गए तो आपकी गर्दन अलग हो जाती है. एक सामान्य शब्द में भी अगर इतनी ताकत कि आपकी गर्दन अलग कर दे या सामने वाला व्यक्ति आपके लिए अपना प्राण दे दे, तो महामन्त्रों में कैसी ताकत होगी. भाषा के विवेक में क्या शक्ति होगी? वही तो देखना है. भाषा का विवेक मुझे चाहिए.
भगवान ने इसके आठ प्रकार बतलाए: स्तोकम् , मधुरम्, निपुणम्, कार्य पतितम्, अतुच्छम्, गर्व रहितम्, पूर्वसंकलितम्, और धर्म संयुक्तम्।
आठ हैं. उसमें सर्वप्रथम-स्तोकम में निर्देश दिया. भाषा बोलनी तो कैसे बोलनी. बहुत कम. साधना में मौन को प्राण माना है. हमारे यहां भी प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, सामायिक में क्या बोलते हैं. बड़ी सुन्दर प्रक्रिया है. यह ध्यान की प्रक्रिया है. पर ध्यान आएगा कैसे. मौन पूर्वक. मौन उसका आधारस्तम्भ है.
ठाणेणं मोणेणं झाणेणं। ये शब्द हैं प्राकृत में. एक स्थान पर मौन पूर्वक मैं ध्यान करता हूं. पहले झाणेणं नहीं आता, मोणेणं पहले आता है. मौन पूर्वक. विचारों का संयम रख करके परमात्मा का स्मरण करूंगा. मन से बिल्कुल मौन हो जाऊंगा. संसार से शून्य बन जाना वास्तिवक मौन है. काया में शून्य बनना यह काया का मौन है. तीनों प्रकार से मैं मौन को ग्रहण करता हूं. एक स्थान पर स्थिरता पूर्वक, बिल्कुल शब्द का व्यापार किए बिना हमारे यहां तो आत्मा का व्यापार चलता है. ध्यानपूर्वक परमात्मा का स्मरण करता हूं.
ध्यान से पहले मौन की भूमिका आनी चाहिए. सारी साधना को सफल बनाने का यही कारण. हमारे जितने आध्यात्मिक पुरुष हुए, उनके जीवन में आप देखेंगे, बहत कम बोलने वाले मिलेंगे. बकवास नहीं करेंगे. एक शब्द का भी गलत प्रयोग नहीं करेंगे..
महर्षि पातंजल योग दर्शन के रचयिता, बहुत बड़े विद्वान भारत के महान दार्शनिक ने क्या कहा. योग में प्रवेश करने से पहले सूचना दीः
वचनपातात्, वीर्यपातात्, गरियसी ॥ आज का मैडिकल साईंस भी इस बात को मानने लग गया. एक पाउंड दूध पीने के बाद शरीर को जो शक्ति मिलती है. एक शब्द बोलने में वह शक्ति क्षय हो जाती है, यह आज वैज्ञानिकों का निष्कर्ष है. उन्होंने खोज की कि ऋषि मुनि ध्यान क्यों करते, थे? मौन क्यों रखते थे? वाणी का इतना संयम इतनी कंजूसी क्यों करते हैं? उसके पीछे क्या रहस्य छिपा है? शारीरिक शक्ति क्षय होती है, वह न हो.
भगवान महावीर ने साढ़े बारह वर्ष तक मौन रखा. पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति के बाद उपदेश ।
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