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-गुरुवाणी
उपदेशो ही मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये।
पयःपानं भुजंगानां केवलं विषवर्धनम् ॥ । कवि कालिदास ने कहा --- उपदेश योग्य आदमियों को दिया जाता है. सांप को दूध पिलाइये, जहर पैदा करेगा. मूर्ख को यदि आपने उपदेश दिया, क्रोध उत्पन्न करेगा. आपके प्रति शत्रुता पैदा करेगा. हमारे मारवाड़ी में बड़ी सुन्दर बात है. मैं तो कई बार कहा करता हूं. आपने सुना भी होगाः
ज्ञानी को गुरू अज्ञानी का दास ॥
थे उपाड़ी लाकड़ी तो मैं उपाड़ी घास ॥ यह मारवाड़ी कहावत है. मैं ज्ञानियों का गुरु हूं. अज्ञानियों का तो दास हूं. क्योंकि अज्ञानियों के साथ आपका यह नम्रतापूर्वक व्यवहार नहीं कर सकते. वे उद्दण्ड हैं. अगर वे लकडी उठाए तो आप घास उठा लो. उसी में कल्याण है. मुकाबला कभी मत करना. अज्ञानियों से कभी शास्त्रार्थ नहीं करना.
जड़ता होती है, पकड़ होती है, पूर्वाग्रह होता हैं, उन आत्माओं के लिए उपदेश कोई उपयोगी नहीं रहता, कोई मूल्यवान नहीं रहता. ये तो अन्तर्वार खोलकर आएं, नम्रता लेकर के आएं. तो उसके अन्दर पात्रता आती है. तब पूर्णता मिलती है.
यहां पर परमात्मा ने यही कहा - वाणी के दोष का सर्वप्रः वारण कर लेना है. क्या बोलेंगे? कैसे बोलेंगे? भाषा के आठ गुण हैं. दशवैकालिक सूत्र के अन्दर भी प्रभ ने वाणी का विवेक बतलाया.
“अपुच्छियो न भासेज्जा भासमाणस्स अंतस,
पिट्टि मंस न खाएज्जा, माया मोसं विवज्जए। परमात्मा महावीर के मुख से निकले हुए ये शब्द हैं. कल इस पर मैं विवेचन करूंगा. यह तो बहुत समझने का है, क्योंकि विश्वव्यापी रोग है. अनादि काल से चला आया. यह क्रोनिक बन गया हैं. अब इसका ईलाज भी उसी प्रकार से किया जाना हैं. जब बीमारी क्रोनिक बन जाती है. बड़ी खतरनाक होती है.
यदि कोई दो चार टैबलेट्स दिया तो यह कोई ऐसी नहीं कि आपकी बीमारी को छुड़ा दे, यानि मुक्त कर दे. काफी उपचार करना पड़ेगा. बड़ा स्वाद आता हैं, आदत है, अनादिकालीन संस्कार है. एक बार नहीं अनेक बार करेंगे, भूल हो जाएगी. कैसे निकालें.
भगवान ने वाणी के प्रकार बतलाए कि भाषा किस प्रकार की होनी चाहिए. भाषा एक अपूर्व विज्ञान है. बहुत बड़ा चमत्कार है. शब्द के अन्दर वह जादू है. युद्ध में देखिए सेनापति की एक गर्जना होती है और कोई ऐसा त्यागी, देश का महान नेता बोलता है, उनके शब्दों का जादू कैसा? लोग अपने प्राण देने के लिए युद्ध में जाते हैं. अपनी गर्दन दे ।
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