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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3-गुरुवाणी: बहुत समझ करके इन्द्रियों का उपयोग करना. ये प्रकृति ने वरदान दिया है. परमात्मा के स्मरण के लिए दिया है. यदि आपने इसका दुरुपयोग किया तो हमारे जैसा कोई दुर्भागी. आपको नहीं मिलेगा, कैसे बोलना है, क्या बोलना, यह सीखने की बात है. वचन रत्न मुख कोठड़ी, चुपकर दीजे ताल; ग्राहक होय तो दीजिए वाणी वचन रसाल।। कवि ने कितनी सुन्दर बात कही. आप यहां जौहरी बाजार में जाइये. सोना चांदी का जो काम करते है. सराफों के यहां जाइये, वे क्या तिजोरी से बाहर निकालकर प्रदर्शनी में रखते हैं. कोई जवाहारात, कोई ज्वेलरी, कभी रखते हैं? सामान दिखाने के लिए बाहर नमूना रहता हैं. बहुत कीमती बहुत मूल्यवान सामान तिजोरी में बन्द रहता है, परन्तु कब दिखाया जाता है. उसके योग्य कोई पात्र आ जाए. ग्राहक आ जाए. तब जाकर तिजोरी खोली जाती है. ग्राहक को माल दिखाया और वापिस माल अन्दर रखते हैं. बराबर ज्ञानियों ने कहा है: वचन रत्न मुख कोठड़ी, चुप कर दीजै ताल। शब्द क्या हैं? ये तो अमूल्य रत्न जैसे हैं, कोहिनूर हीरे जैसे हैं. बहुत मूल्यवान शब्द हैं. कहां रखना मुखरूपी कोठरी में, तिजोरी में और छुपा कर ताला लगाकर रखना. ग्राहक हो तो दीजिए वाणी वचन रसाल। यदि कोई ग्राहक आ जाए, योग्य पात्र आ जाए, तो शब्द को देना, वाणी का व्यापार करना. प्रेम और सदभाव की पूंजी कमा लेना. नफा ले लेना और वापिस चुप का ताला लगाकर बैठ जाना. ऐसे जीवन का व्यापार किया जाता है. कुपात्र को कभी उपदेश नहीं दिया जाता. भगवान महावीर के साथ वर्षों तक गौशाला रहा. परमात्मा ने कभी उपदेश दिया. आपने सुना होगा कल्प सूत्र में सारा प्रसंग भगवान महावीर का उसमें गौशाले के साथ का वर्णन आता है. कभी गौशाला को उपदेश दिया. चण्ड कौशिक को उपदेश देने परमात्मा वहां चल करके गए. बिना आमन्त्रण उसके बिल तक गए. चण्ड कौशिक ने बुलाया नहीं था. कि भगवान मेरे द्वार पर आओ. और मुझे उपदेश दो. वहां छद्मस्थ काल के अन्दर परमात्मा ने उपदेश दिया. दो शब्द कहा उसे जागृत करने के लिए. ज्ञान से परमात्मा जानते थे मेरे निमित्त, से यह आत्मा जागृत हो जाएगी. एकान्त कल्याण की भावना से प्रभु वहा गए. __गौशाला सारा दिन परमात्मा के साथ रहता था. कभी प्रभु ने कहा? क्योंकि कुपात्र था. अयोग्य आत्माओं को कभी उपदेश नहीं दिया जाता. योग्यता और पात्रता देख कर उपदेश दिया जाता है. उत्तम खेत के अन्दर बीज बोया जाता है. पहाड़ों के अन्दर या रेगिस्तान में नहीं. 214 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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