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-गुरुवाणी
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सुखी हों, आनन्द में हों, तब पीठ के पीछे रहेगा. कभी आगे आने का प्रयास नहीं करेगा | आपको सुखी अवस्था में देखकर आनन्द में रहेगा.
साधु का जीवन ही ऐसा होता है कल्याण मित्र की तरह, हमारा मित्र गृहस्थ में प्रसन्न है, आत्मा की साधना में मग्न है. बड़ा आत्म-सन्तोष मिलेगा. वह आपकी सुखी अवस्था में पीछे रहेंगे. वह कभी आगे आने का, आपसे फायदा उठाने का प्रयास नहीं करेंगे. कोई गलत फायदा नहीं लेंगे. परन्तु जब युद्ध का समय होता है, जब तलवार भाले बरछे चलते हैं और सामने यदि गोली बारी चलती हो तो ढाल क्या काम आता है? कहां ओटना है? पीछे से निकलकर आगे आता है. तलवार का घाव स्वयं सहन करता है, अपने मित्र को बचाने के लिए.
मित्र ऐसा चाहिए जब कर्म के आगमन का समय हो, सामने आकर खड़ा रहे. आपका रक्षण करे. आपको दुर्गति में जाने से बचाए. ऐसी मित्रता को ही यहां स्वीकार किया है. तो ऐसे समय जब दुर्विचार का आक्रमण हो, तब साधु आपके रक्षण के लिए आते हैं. सामने आकर खड़े हो जाते हैं. बचाव करते हैं. आपमें संकल्प जागृत करते हैं. आपके अन्दर विवेक दृष्टि खोलते हैं. प्रवचनों के द्वारा आपके उपयोग और विवेक को जगाते हैं. गर्जना करके आपके हृदय की भावनाओं को उपस्थित करते हैं. यह काम साधु पुरुषों का है.
निष्काम भावना से एकान्त जगत के प्राणीमात्र के कल्याण के लिए उनकी कामना होती है? कोई स्वार्थ नहीं. पर जगत में ऐसा कोई मित्र नहीं मिला.
इसीलिए यहां पर कहा कि ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे? कहां तक वकील का आश्रय लेंगे? लेने की कोई जरूरत नहीं. सच बोलना कभी सीखना ही नहीं पड़ता. झूठ बोलना ही सीखना पड़ता है. यह आप याद रखना.
सर्वत्र निन्दासत्यागोऽवर्णवादश्च साधुषु । उस महान पुरुष ने बड़ी गंभीरता पूर्वक यह सूत्र दिया है. कि संपूर्ण परनिन्दा का त्याग. बड़ा स्वाद आता है परनिन्दा में बोलते समय पानी पकौड़ी खाते हैं, चाट खाते हैं, उससे भी ज्यादा स्वाद इसमें मिलता है. जितनी बार बोलो, उतनी बार नया स्वाद मिलता है. उसका एक बार मिलेगा, इसमें तो अनेक बार मिलेगा. बड़ा आनन्द आता है.
परन्तु यह नहीं सोचता कि आगामी भव के अन्दर जीभ मिलेगी नहीं. भगवती सत्र में परमात्मा महावीर ने कहा - अपने शिष्य गौतम से. हे गौतम! जो व्यक्ति अपनी जिस इन्द्रियों का दुरुपयोग करेगा. भवान्तर में वे इन्द्रियां उसके लिए दुलभ होंगी. मिलेगी नहीं. आंख का दुरुपयोग किया. अन्धापन आएगा. कान का दुरुपयोग किया - बहरापन मिलेगा. जीभ का दुरुपयोग किया तो गूंगे बनोगे. जीभ मिलेगी ही नहीं. आप विचार कर लेना. कि प्राकृतिक वस्तु.का कभी दुरुपयोग नहीं करना. यदि दुरुपयोग किया. असत्य, परनिन्दा में, परकथा में, विकथा के अन्दर ये जीभ मिलने वाली नहीं.
Maay
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