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-गुरुवाणी:
हमारी पूरी पीढ़ी हमने जीभ के भरोसे सौंप कर रखी है. इसी लिए आप को फैमिली डाक्टर रखना पड़ता है.
कोई जमाना था, मोहल्ले के अन्दर कोई एक डाक्टर भी आ जाए पूरा मोहल्ला इकट्टा हो जाता कि ये कहां से आया. यमराज का प्रतिनिधि कैसे आया. लोग घबराते. मकान के अन्दर, पूरा मोहल्ला आता. क्या हुआ? लोगों में इतनी प्रेम भावना थी, मेरे पड़ोसी को क्या हुआ? कि डाक्टर बुलाना पड़ा. गांव में कोई डॉक्टर नहीं मिलता. आहार विहार का पथ्य पालते, यही सबसे बड़ी औषधि. बहुत ज्यादा तकलीफ हुई तो उपवास कर लेते. आयुर्वेद के अन्दर बड़ा सुन्दर सिद्धान्त है. ___ "लंघनं पथ्यौषधम्" सबसे बड़ी दवा है लंघन याने, उपवास इससे बढ़कर के जगत् में कोई दवा है ही नहीं. सारे विकार खत्म हो जाएं. परन्तु वह हमको करना नहीं. दवा भी चाहिए, पेट तो रोज भरना है. बिना खाली किए, साफ किए इसमें शुद्धता आएगी कहां से? ___ आयुर्वेद का सिद्धान्त धार्मिक सिद्धान्त भी है कि अशुभ कर्म जो आ जाए धार्मिक दृष्टि से. यदि उस समय उपवास की मंगल भावना आ जाए. भावना कर्म का प्रतिकार करती है. दूषित तत्व का निवारण करती हैं, शरीर के विकारों का भी उपशमन करती है. सारे शरीर की प्रक्रिया शुद्ध हो जाती है, परन्तु हमारी आदत उपवास नहीं करना.
हमारे पूर्वज उपवास की औषधि का सेवन करते. सर्दी आ गई, बुखार आ गया, शरीर अगर घुट रहा है, ज्वर से यदि क्लान्त हैं. ज्वर से पीड़ित हैं तो सुबह क्या करते, वह जानते थे. शत्र और मित्र की पहचान उनको बडी सन्दर थी. मेरी साधना के अन्दर शत्र बनकर के बीमारी आई है. मेरी साधना में रुकावट पहंचाएगी. मेरी आराधना को खंडित करेगी. प्रमाद लेकर के आएगी. मेरे आरोग्य को भी नुकसान पहुंचाएगी. ___ शरीर तो धर्म साधना का साधन है. इसे सुरक्षित रखना है. धर्म क्रिया इसके द्वारा होती है. क्या करते? जाने, मेरा दुश्मन मेहमान हो गया. दुश्मन कभी आमन्त्रण से नहीं आते. वे तो बिना बुलाए आते हैं. यह कर्म है बीमारी के रूप में मेरे अन्दर आया.
सुबह उठते ही यदि शरीर टूटता है, बुखार सा लगता है, सर्दी जुकाम हुआ है, क्या करते? उपवास. चलो आज इसके द्वारा, इस निमित्त से, मेरा उपवास तो हुआ. तप की आराधना करते. ध्यान में बैठ जाते प्रभु का स्मरण करते. ईश्वर का स्मरण करते. कि चलो आज दुकान के पाप से बचा, झूठ बोलने से बचा. चोरी से बचा. न जाने कितने पाप और अनर्थ से आज मेरा रक्षण हुआ. इस दुश्मन का बड़ा भारी उपकार, बड़ा एहसान. इसने आकर मेरे ऊपर उपकार की वर्षा की. ऐसी मंगल भावना रखते. सामायिक में बैठ जाते. अपनी साधना में बैठते. संपूर्ण संसार का त्याग करके. मन से साधु बन कर के बैठते. यह बड़ी समझने की बात है. आने वाला दुश्मन यह सोचता कि मुझे अब खाना
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