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-गुरुवाणी
"कुछ नहीं, बस अपनी पत्नी को एक पत्र लिख रहा था." "लिख लिया?" “हां, पूरा हो गया." “मेरा आदेश है कि इसके नीचे एक लाइन और लिख दो." "क्या?"
"बस लिख दो कि मेरे जीवन का यह अन्तिम पत्र है. मैं चाहता हूं कि तुम्हारी पत्नी को मालूम पड़ जाये. इसलिए जीवन का अन्तिम संदेश जो तुम्हें लिखना हो उसे लिख दो.”
नैपोलियन ने कहा – “अब पत्र मुझे दे दो. तुम्हारे घर तक यह पत्र पहुंच जायेगा. अपने साथी सिपाहियों से कहा-इसको गिरफ्तार कर लिया जाये."
सुबह के समय जैसे ही वहां परेड पर नैपोलियन आया. उस कैप्टन को बन्दी बनाकर लाया गया और आदेश दिया कि इस व्यक्ति ने मेरे आदेश का उल्लंघन किया है. इसने अनुशासन भंग कर दिया. अतः इसे पुरस्कार में मौत की सजा दी जाती है, सिपाहियों को बुलाया और कहा कि इसे गोली से उड़ा दो.
सारी सेना के अन्दर खलबली मच गई क्योंकि उससे सेना स्तब्ध रह गई, गोली से उड़ा दिया गया. ____ मैं कई बार सोचा करता हूं कि इस जगत का सुप्रीम कमाण्डर इन चीफ परमात्मा वीतराग तीर्थंकर श्री महावीर प्रभु ने अनन्त कर्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त की, अन्तर्शत्रुओं पर सफलता प्राप्त की, उस जगत के सर्वोच्च विजेता, सेनापति परमात्मा महावीर की आज्ञा का यदि हम अनादर करेंगे (उल्लंघन करेंगे तो हमें कैसी सजा मिलेगी. आप स्वयं सोच लें.
एक सामान्य सेनापति के आदेश के उल्लंघन की परिणति मौत में हुयी और जगत का जो सर्वोच्च सेनापति है उस परमात्मा की आज्ञा का यदि हम अनादर करें, उल्लंघन करें, उपेक्षा करें, तो कर्म राजा कैसी सजा देगा वह आप सोच लेना. भले ही आप मौज कर लें लेकिन हमारे अन्दर यह मानसिक पागलपन हैं
चित्त वृत्तियों पर हमारा कोई अधिकार नहीं. किसी भी इन्द्रिय पर हमारा अनुशासन नहीं. हमारे मन के विषय पर हमारा कोई अधिकार नहीं है. किस प्रकार हमें सफलता मिलेगी. ___ हमारी यह दशा है कि आत्मा रोती रहे, मुझे अपने मन को प्रसन्न रखना है. इन्द्रियों के विषयों को तृप्त करना है. परन्तु मन के विषय के अन्दर कभी तृप्ति मिलने वाली नहीं है. मन की भूख के अन्दर कभी पूर्ण विराम मिलने वाला नहीं. आप मजदूरी करते चले
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