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गुरुवाणी
मोक्ष का राज मार्ग (ज्ञान-दर्शन और चरित्र)
परमात्मा महावीर ने अपने धर्म प्रवचन के द्वारा सारे जगत के कल्याण की मंगल भावना से, जीवन का एक अपूर्ण मार्ग-दर्शन किया है. भगवन से जब ये प्रश्न किया गया कि भगवान! संसार में धर्म किसे कहना चाहिए? किस प्रकार के धर्म की आराधना जीवन में होनी चाहिये? प्रभु! ऐसे मार्गदर्शन की आवश्यकता है जिससे हमारा जीवन सक्रिय हो एवं विचार रचनात्मक भूमिका निभा सके. परमात्मा ने इन सारे प्रश्नों का अपने उपदेशों द्वारा समाधान किया. उन्होंने कहाः
"आणाए धम्मो" अर्थात् आज्ञा ही धर्म है. परमेश्वर की जिनाज्ञा को स्वीकार करना, उनकी आज्ञा अनुसार जीवन का पालन करना तथा आज्ञा को शिरोधार्य रखकर के चलना ही जीवन का सर्वश्रेष्ठ धर्म है.
भगवन्! जो आपने कहा वही परम सत्य है और उस सत्य को मैं भावपूर्वक स्वीकार करता हूं. आपकी आज्ञा के लिए जीवन समर्पित करता हूं. समर्पण के द्वारा जो सर्जनात्मक शक्ति पैदा होगी, वही शक्ति आगे चलकर साधना को सफल बनायेगी. साधना की सफलता के लिए समर्पण आवश्यक है और समर्पण से पूर्व स्वीकार करना अनिवार्य है. अस्तु परमात्मा जिनेश्वर की आज्ञा को मैं पहले शिरोधार्य करता हूं भगवन्त ने कहाः
"आज्ञाराध्दा विराध्दा च शिवाय च भवाय च" परमात्मा की आज्ञा को स्वीकार कर चलने वाला विसर्जन को प्राप्त करता है. परम्परा का पूर्ण विराम प्राप्त करता है. परन्तु भगवान की आज्ञा से विपरीत आचरण करने वाला अथवा उनकी आज्ञा का अनादर करने वाला दुर्गति प्राप्त करता है. वही दुर्गति में जानेवाला भगवन्त की आज्ञा का पूर्ण आदर करे, आचरण करे तो वह मोक्ष का भागी भी हो सकता है. । प्रस्तुत उपदेश के द्वारा व्यक्ति को उसके जीवन के लक्ष्य का उद्बोधन कराना है. यहां से सद्गति की यात्रा करनी है. दुर्गति में नहीं जाना है. सद्गति को प्राप्त करने का परम साधन परमात्मा जिनेश्वर की आज्ञा का पालन भावपूर्वक करना है, कदाचित् शारिरिक अनुकूलता न हो अथवा अन्दर कोई ऐसी कर्म की रुकावट आ जाये जो करणी के असमर्थ हो, परन्तु भाव से स्वीकार करना अनिवार्य है. अगर आज्ञा का परिपूर्ण पालन न हो सके तो उसका पश्चाताप करना यथेष्ट होगा. यह कहते हुए कि भगवान मैं अपराधी हूं.
भूल को स्वीकार करने वाला सम्यग्दर्शन की प्राप्ति करता है. परिपूर्ण सम्यक् वह आत्मा प्राप्त करती है जो धर्म की इमारत का स्तम्भ माना गया है. बहुत वर्ष पहले मैंने
तो
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