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: गुरुवाणी:
उपकारी के उपकार का स्मरण किया. कैसा परोपकार. आपने मेरे ऊपर महान उपकार किया. उस विचार दान का परिणाम कि मेरे अन्दर विचार का वैभव प्रकट हुआ. भविष्य में इस प्रकार की मुझ को भी प्रेरणा. कोई अपना मित्र हो किसी को सहयोग देने की ज़रूरत हो तो इस प्रकार की कृतज्ञता करनी चाहिये कि इसका मैंने नमक खाया है. यह मेरे भूतकाल का उपकारी है. जब-जब प्रसंग आए, उसकी कृतज्ञता का स्मरण कीजिए.
उपकारी के उपकार को कभी भूलने का प्रयास मत कीजिए. कृतघ्न कभी मत बनिये और अवसर आ जाये तो कृतज्ञ बनने का प्रयास करिये धन सम्पत्ति, पूर्व के पुण्य से मिली है. ऐसे पुण्यशाली आत्माशाली भद्र साधू सन्तों की सेवा के द्वारा, अनेक दीन-दुखियों की परोपकार के द्वारा अर्पण करके जिन्होंने पुण्योपार्जन किया है पुण्य का सम्यक् प्रकार से आप उपयोग करिये. पुण्य की हत्या कभी मत करिये.
हम तो पुण्य की हत्या करने निकले हैं. गलत कार्यों में पुण्य के द्वारा पाप अर्जन कर रहे हैं, प्रकाश में से अन्धकार में जाने का प्रयास कर रहे हैं. इसे रोकने का भी उपाय है. उस महान आचार्य ने नया चिन्तन दिया:
" सर्वत्र निन्दासंत्यागोऽवर्णवादश्च साधुषु ”
पर निन्दा सबसे भयंकर मानव की बीमारी है. जीभ गन्दी होती है. अवर्णवाद का परिणाम साधु पुरुषों की निन्दा, सज्जन पुरुषों की निन्दा करके व्यक्ति अपनी मर्यादा का उल्लंघन करता है और भविष्य में जीव की प्राप्ति उस आत्मा के लिए दुर्लभ बनती है.
“सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम्
प्रधानं सर्वधर्माणां जैनं जयति शासनम्”
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यह शरीर और संसार सभी कुछ छोड़कर एक दिन चले जाना है. मृत्यु जीवन
की वास्तविकता है. संसार की जिन भौतिक
उपलब्धियों के लिए अथक पुरूषार्थ कर रहे हो, उन्हें कल खो देना पड़ेगा. समस्त सांसारिक उपलब्धियों को मृत्यु व्यर्थ बना देगी.
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