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-गुरुवाणी
परनिन्दा के पाप से अपने आपको बचाना है. इस पर भी विचार हम करेंगे. कितना अनर्थ होता है इसमें. पूरा परिवार जलता है. रोज समाचार पत्रों में राजनैतिक नेताओं का तमाशा देखते हैं. सिवाय निन्दा के कोई दूसरी बात आती है? कभी किसी राजपुरूष ने किसी आत्मा की प्रशंसा की? मरने के बाद जरूर गुणगान गाया जाता है. मालाएं पहनाई जाती हैं. पर जब तक जीवित होते हैं वहां तक कभी नहीं.
विनोबा भावे ने एक बड़ा सुन्दर अभिप्राय दिया कि प्रजातन्त्र में ऐसे सज्जन व्यक्ति आने चाहिए जो इस देश के लिए राष्ट्र के निर्माण के लिए कुछ कर सकें. सज्जन व्यक्ति की व्याख्या उन्होंने बतलाई कि जो परनिन्दा न करे और आत्म-प्रशंसा भी न करें. क्योंकि दोनों ही दुर्जन व्यक्तियों के लक्षण हैं. स्व-प्रशंसा, मैं बड़ा विद्वान् हूं, बड़ा जानकार हूं, बड़ा सेवा करने वाला हूं. अपने मुंह से ही अपना गुणगान करने वाला, और प्रतिदिन दूसरों की निन्दा करने वाला, सामने वाला व्यक्ति बड़ा गलत है, बड़ा ख़तरनाक है,बड़ा चोर है, बेईमान है दुर्जनता का प्रतीक है. आज के नेताओं को आप देख लीजिए. उनके वक्तव्यों को आप सुन लीजिए. आपको मालूम पड़ पाएगा कि यह सज्जनता के अन्तर्गत आते हैं या इनकी वाणी में दुर्जनता है. वे कैसे राष्ट्र का रक्षण करेंगे?
किसी समय में बड़े सुयोग्य नेता थे. आज भी आपको कुछ ऐसे वर्ग मिलेंगे. परन्तु बहुत कम है. पहले हमारे जीवन में यह चीज़ आनी चाहिए कि हम निन्दा नहीं करेंगे. गुणों की तरफ ही मुझे दृष्टिपात करना है और गुणों को ही ग्रहण करना है.
“अवर्णवादश्च साधुषु" "कभी साधु पुरुषों के विषय में ऐसा अकारण गलत नहीं बोलना. कभी उनके दोषों को देखकर के अपनी जीभ गन्दी नहीं करना. साधु पुरूषों के लिए जीवन कर्म के अधीन विनम्रता आनी चाहिए. अपनी दृष्टि में कभी इस प्रकार का अवर्णवाद नहीं आना चाहिए. ये सारी चीज़े इसके अन्दर एक-से एक बढ़ कर के हैं और बड़े महत्त्व की है. आपके व्यवहार को सुन्दर बनाने वाली हैं. आपके जीवन का नव-निर्माण करने वाली हैं और आगे चलकर के आपकी आत्मा को शांति प्रदान करने वाली और भविष्य में सद्गति देने वाली चीजे हैं. इस शिष्टाचार का पालन मुझे अपने व्यवहार में करना है. कल इस विषय पर विचार करेंगे. शिष्टाचार, जो हमारे लिए आवश्यक माना गया, इस पर दो-तीन दिन लगकर विचार करेंगे, काफी लम्बा सब्जेक्ट (विषय) है. आज इतना ही रहने दें.
सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्वधर्माणां जैन जयति शासनम्
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