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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: मैं सब जानता हूं आई एम ग्रैजुएट. तुम मुझे क्या सिखाओगे, पढ़े लिखे नहीं हो.||| गलत ट्रेन में चढ़ गए पूछ करके चढ़ना था, अनाड़ी आदमी हो. दूसरे से पूछा – तुम्हारी टिकट कहां है? तू मेरी टिकट पूछने वाला कौन? सब नशे में थे. तीसरे से पूछा. उसने कहा - क्या यार, बिना टिकट चढ़ गए तो चुपचाप बैठ जाओ. गड़बड़ किया तो आने वाले स्टेशन पर पुलिस बुलाकर नीचे उतार देंगे. सबने गलत जवाब दिए. पांचवा व्यक्ति जरा सही नजर आ रहा था, नशे की मात्रा कम थी. पूछा महाशय जी टिकट? यार! तुम समझते नहीं, किस दुनिया में जीते हो, दिस इज डैमोक्रेसी. हम पांच मित्र हैं. पांचों को तुमने पूछा. उसने अपने साथियों की तरफ इशारा करके-पूछा क्यों यार, अपने सही चढ़े हैं? पांचों ने हाथ ऊंचा कर दिया. वी आर राइट, बिल्कुल सही. यह अकेला कब से बकबक कर रहा है. कोई सुनने वाला नहीं. माथा खा रहा है इसको नीचे उतारो. __ मात्र चलना ही पर्याप्त नहीं है, चल तो सभी रहे हैं. दुनियां में सैकड़ों धर्म हैं, सभी चल रहे हैं. ऐसा भी प्रतीत हो रहा है, सभी की मंजिल की तरफ यात्रा है, फिर भी मंजिल की उपलब्धि नहीं हो पाई. क्यों? क्योंकि सभी की यात्रा सुषुप्तावस्था में चल रही है, कोई भी जागृत दशा में नहीं चल रहा है. कोल्हू के बैल की तरह सबकी आंखों पर अन्ध विश्वास की पट्टी बंधी है. परिणाम क्या आता है? कोल्हू के बैल की दशा देखिए, सुबह से शाम तक चलते-चलते शरीर थक के टूट जाता है लेकिन परिणाम में शून्य ही प्राप्त होता है, मीलों की यात्रा चलकर भी वहीं का वहीं रहता है, परिणति में सिवाय थकान के कुछ उपलब्ध नहीं हो पाता. हम भी चल रहे हैं, वर्षों से सामायिक कर रहे हैं, व्रत, नियम कर रहे हैं, प्रतिक्रमण कर रहे हैं, लेकिन परिणाम जीवन में कुछ भी परिवर्तन जैसी घटना नहीं घटी. __ आप किसी व्यक्ति को बाजार में देखकर यह निर्णय नहीं ले सकते कि यह धार्मिक है और यह नास्तिक, जो बेईमानी नास्तिक कर रहा है वही धार्मिक कर रहा है. झूठ, क्रोध, अहंकार कहीं पर भी आपको भिन्नता नजर नहीं आएगी. ऐसा कैसे? मान्यता में इतनी बड़ी भिन्नता और आचरण में पूर्णतः समरूपता. ऐसी साधना ऐसी यात्रा को आप क्या कहेंगे? ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की. उस रचना में सबको एक समान आयुष्य दिया. परमात्मा की दृष्टि में अमीर और गरीब का भेद नहीं होता. दीवार होती ही नहीं, यहां तो दरवाजा है. कोई भी आओ कोई भी जाओ. यहां कोई रुकावट नहीं. परमात्मा के द्वार के अन्दर हमेशा दरवाजा खुला नजर आएगा. कोई साम्प्रदायिक दीवार नजर नहीं 90 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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