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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - -गुरुवाणी भवबीजाङ्कुर जननाः रागाद्याः क्षय मुपागता यस्य ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो वा जिनो वा नमस्तस्मै।" महादेव की स्तुति के प्रथम श्लोक में उन्होंने कहा जिसके भव रूपी अंकुर नष्ट हो गए, भूल की परम्परा का विसर्जन हो गया, संसार का पूर्णविराम जिन्होंने प्राप्त कर लिया, राग और द्वेष सर्वथा क्षय हो गए, जहां इस प्रकार की पूर्णता हो, संपूर्ण दोष मुक्त आत्मा हो. जिन्हें फिर आप चाहे राम के नाम से पुकारे, महावीर के नाम से पुकारे, कष्ण के नाम से पुकारें, हरि कहें, शंकर कहें, कोई आपत्ति नहीं. किसी भी नाम से आप पुकारें जगत् के वे महादेव हैं, मैं उन्हें नमस्कार करता हूं. अनेकान्त दष्टि से कैसा अपर्व चिन्तन, जगत को दिया कि सम्पूर्ण साम्प्रदायिक द्वेष खत्म हो जाए. हमारी आत्मा के बीच में जो दीवार है, वह दीवार टूट कर के, दरवाजा बन जाये. यदि एक बार यह निष्ठा आ जाए, परमात्मा के प्रति आप प्रामाणिक बन जायें तो यह जीवन ज्योर्तिमय बन जाए, प्रकाशमय बन जाये. परन्तु आज तक हमनें शब्दों को पकड़ा, धर्मग्रन्थों के अन्दर मात्र शब्दों को देखा. आज तक उसकी आत्मा का स्पर्श नहीं किया. उसके प्राणों को छूने का प्रयास तक नहीं किया. उन महापुरुषों ने किस भावना से शब्दों को जन्म दिया है, उनके शब्दों का रहस्य क्या है? उन शब्दों का जरा विश्लेषण कीजिए. गहराई में जा कर के शब्दों की आत्माओं का स्पर्श करिए. अब उसके भावों को समझ लेंगे, अन्तर्भावों की शद्धि हो जाएगी. हमने शब्दों के शरीर को पकड़ा और यही कारण है कि साम्प्रदायिक द्वेष में दृढ़ता आ गई, मनोभेद उत्पन्न हो गया. कछ वर्ष पर्व धर्म प्रचार की भावना लेकर इंग्लैंड से एक पादरी आए. सेवा की उत्तम भावना लेकर आये. रास्ते में आ रहे थे तो ट्रेन में बड़े मियां साथ हो गए. बैठे-बैठे बड़े मिया को विचार आया और उन्होंने पूछा, हमारे देश में आने का आपका प्रयोजन? "लाडे क्राइस्ट" के विचारों का प्रचार करने आया हूं. कोई आपत्ति है? आपके धर्म में ऐसी कौन सी विशेषता है कि आपको वहां से यहां आना पड़ा? हिन्दुस्तान में तो इतने धर्म हैं, कि अगर यहां से निर्यात किया जाये तो भी कोई आपत्ति नहीं है. पादरी जरा विचार में पड़ गया. नया-नया धर्म का व्यापार करने आया था. कुछ नफा मिल जाये. उनको अपनी जमात बढ़ाने से मतलब है. वहां यह प्रयोजन नहीं कि आत्मा कुछ शुद्ध बने, अलिप्त बने. जब उनसे यह पूछा कि आपके धर्म में ऐसी क्या विशेषता है कि आपको यहां आना पड़ा. उसने कहा – “लार्ड क्राइस्ट" का आदेश है - तुम्हारे गाल पर यदि कोई एक थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल तुम उसके सामने कर दो. उस आत्मा को तुम बल से नहीं प्रेम से जीतो. प्रेम का सन्देश लेकर आया हूं. बाइबल का यही आदर्श है. बड़े मियां बड़े समझदार थे. उन्होंने कहा ऐसी बातें तो मैंने बहुत सुनी हैं और पढ़ी हैं. लोग विचारों का सम्प्रेषण कर देते हैं मगर आचार में शून्य रह जाते हैं. आज के उपदेशक ता गुना . 87 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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