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गुरुवाणी
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जिसके विध्वंस पर ही समत्व का सृजन संभव है. समत्व सृजन के लिए अपनी गलतियों की स्वीकृति प्रथम सोपान है.
स्वीकृति की कला यदि आ जाए. समर्पण सहज में आयेगा और एक बार यदि समर्पण की भूमिका आपने प्राप्त कर ली तो आत्मा के गुणों का सर्जन प्रारम्भ हो जाएगा. स्वीकार की भूमिका चाहिए. हमारी आदत है कि हम भूल की वकालत करते हैं. परमात्मा ने कहा कि भूल के बाद पश्चाताप होना चाहिए. वही उसकी औषधि है. भूल बीमारी है, रोग है
और उसका उपचार है प्रायश्चित. पश्चाताप का आंसू आना चाहिए. ___जीवात्मा अनादि काल के ये संस्कार लेकर के आई है. कदाचित् प्रमादवश भूल हो जाए, हम स्वीकार करें. भविष्य में ऐसा न हो, इसका संकल्प करें. जो प्रमाद से भूल हो चकी, उसके लिए हृदय के अन्दर दर्द पैदा हो. तो आप सही मार्ग पर चल रहे हैं. उन भूलों को जानने का प्रयास करें. भूल को स्वीकार कर पश्चाताप के द्वारा उसका शुद्धीकरण कर लेना सम्यक विचार, सम्यक दर्शन है. भूलों को अलग-अलग दृष्टिकोणों से जान लेना सम्यग्ज्ञान है और भूलों से आत्मा को निवृत्त कर लेना, उसका संकल्प करना सम्यक्चारित्र और सम्यक आचरण है. पहले आपको अपनी दिशा लक्ष्य निश्चित करनी होगी. भगवान ने कहा है:
"सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः" सम्यक श्रद्धा हो, विशुद्ध ज्ञान हो. निर्मल चारित्र्य हो, वही मोक्ष का राजमार्ग है. अन्ध श्रद्धा से मुक्त बनना पड़ेगा. इन्द्रियों की वासनाओं से आपको मुक्त बनाना पड़ेगा, तब सम्यग्दर्शन की विशुद्धता मिलेगी. परमात्मा के प्रति निष्ठा आनी चाहिए.
आपकी निष्ठा, सम्यग्दर्शन, धर्म इमारत की आधारशिला है. श्रद्धा उस आधारशिला का पत्थर है. दृढ़ संकल्प करना है. परमेश्वर के प्रति पूर्णतया जीवन को समर्पित कर देना है. भूल का प्रवेश द्वार बन्द हो जाए. परमात्मा के समर्पण का यह चमत्कार है, पहले आपको निष्ठा प्राप्त करनी पड़ेगी. परमात्मा को छोड़ कर के और कहीं नहीं जाना है. उस परमेश्वर को, जो परिपूर्ण है, पूर्ण समत्व की भूमिका है, जो पूर्ण वीतराग दशा के अन्दर है, जहां राग और द्वेष का सर्वथा अभाव है, ऐसी परिपूर्ण आत्मा को ही अपना सर्वस्व अर्पण करना है, फिर चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित हो.. ___कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्र सूरि जी महाराज गुजरात के महान् सम्राट् महाराजा सिद्धराज की विनती से, उन्हीं के आग्रह से सोमनाथ के मन्दिर में गए. एक शिवोपासक पंडितजी मिले. उन्होंने कहा, महादेव की स्तुति आपके द्वारा हो. सोमनाथ देव की ऐसी अपूर्व स्तुति की, महादेवस्रोत्र की रचना की. सर्वप्रथम महादेव शब्द का परिचय दिया. परिभाषा बताई की महादेव किसे कहा जाता है:
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