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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी शा ध्यान और साधना में मन की एकाग्रता परमात्मा महावीर ने जीव मात्र के कल्याण के लिए अपने धर्म प्रवचन के द्वारा जगत् पर सबसे बड़ा उपकार किया है. दीर्घकाल की साधना के बाद परमात्मा को जो उपलब्धि प्राप्त हुई उसे सारे जगत् के कल्याण के लिए प्रवचन के माध्यम से प्रदान किया है. साधना के द्वारा किस प्रकार अन्तशुद्धि प्राप्त की जाए, किस प्रकार प्रवचन के द्वारा जीवन की पवित्रता को प्राप्त किया जाए और प्रवचन के मार्गदर्शन से जीवन की पूर्णता प्राप्त हो. यह सारी जानकारी प्रवचन श्रवण से प्राप्त होती है. __श्रवण साधना का एक प्रकार है. जन्मजन्मान्तर की गन्दगी से आलिप्त हूँ. धीरे-धीरे मलीनता मिटाने का यदि हम प्रयास करें तो सफलता निश्चित है. तीन-चार दिनों से यही चिन्तन करते हुए चले आ रहे हैं. बाहर के जगत् से अन्तर्जगत में हम प्रवेश करें, जगत् को नहीं पहले अपने आप को देखने का प्रयास करें, जिसमें चित्त-वृत्तियों का शुद्धीकरण हो, ऐसी सरल साधना में हम प्रवेश करें. साधना के प्रकार को समझें और परमात्म तत्व से सुन्दर विचारों को जीवन में हम सक्रिय बनायें. परमात्मा के विचारों को अपने आचार से प्रकट करें. मैं क्या जानता हूं? यह जानकारी अपने शब्दों से नहीं, अपने आचरण से प्रकट करें और जिस दिन इस विषय में सक्रिय हो जाएंगे, धर्म साधना का अनुभव और उसकी अनुभूति सहज में प्राप्त करने लगेंगे. सर्वप्रथम यही चिन्तन करना है, कि हम जा कहां रहे हैं? हमारी दिशा निश्चित नहीं हैं, हमारे जीवन का कोई ध्येय या लक्ष्य निश्चित नहीं है. यदि मैं आपसे पूछे कि आप कहां जा रहे हैं? कोई निश्चित नहीं. लक्ष्य की अज्ञानतावश भटक रहे हैं. चलने और भटकने में बहुत अन्तर है. हम संसार में भटकने के लिए नहीं आये, चलने के लिए आए हैं. जीवन की यात्रा का पूर्णविराम चाहिए. कहां तक इस संसार में हम श्रम करेंगे? कहां तक श्रम के द्वारा इस जीवन में संघर्ष उत्पन्न करेंगे, मुझे विश्रान्ति चाहिए, विराम चाहिए. संसार का विसर्जन चाहिए. जिस दिन अपनी आत्मा को संसार से शून्य बना लेंगे, उस दिन से आत्मा के गुण सक्रिय बन जायेंगे, आत्मा के समस्त गुण जागृत हो जाएंगे. मूर्छित अवस्था से जागृत में आ जाएंगे और वह जागृति भविष्य में आपके जीवन को पूर्णता प्रदान करेगी. जीवन में जागृति पहले चाहिए. नींद नहीं, जागृत दशा में श्रवण करना है. उपयोग और विवेक की जागृत दशा में, यदि परमात्मा के वचन का पान किया जाए तो वह अमृतपान, विषय और कषाय के जहर का सर्वनाश कर देता है. क्रोध कषाय को जहर की उपमा दी गई है. उसी जहर से अन्तरात न 85 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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