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गुरुवाणी
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उपस्थित हैं. पीछे से नंगी तलवार है. मफतलाल घर से निकले, सवारी निकली उनकी, मौत की सवारी और वह चलते-चलते-चलते राज-दरबार तक आ गया. पूरे रास्ते में एक बूंद भी बाहर नहीं गिरा. कैसा संतुलन!
क्षमा कर दिया गया. राज-दरबार में लाकर के पेश किया. मफतलाल ने निवेदन किया कि महाराज आपके आदेश के अनुसार कार्य तो किया परन्तु एक बूंद तेल बाहर नहीं आया. साधु महाराज वहीं पर बैठे थे और उन्होंने मफतलाल को कहा कि मफतलाल घर से राज दरबार तक आप आए तो आपका मन कहां भटकता था?
महाराज, वह तो तपेले में ही था.
सारा तर्क खत्म हो गया. मफतलाल का पुछना बन्द हो गया. मन चंचल है – कैसे एकाग्रता आ गई? झांक करके देखा भी नहीं कि बाहर क्या हो रहा है. लोग नाच रहे हैं, गा रहे हैं.
उसने कहा कि मझे तो तपेले में मौत नजर आ रही थी. वहीं देख रहा था, पीछे नंगी तलवार की चिन्ता थी महाराज. मैंने और कुछ नहीं देखा, मेरा मन इसी में रहा.
तात्पर्य यह है कि जिस दिन आप मन को समझा लेंगे, चेतावनी दे देंगे कि जो तू इकट्ठा कर रहा है, तुझे छोड़ना होगा. जो तूने पाया है तुझे खोना है. एक दिन तू यहां से जाएगा. एक बार उसे मौत का परिचय दे दें, जगत् की अनित्यता का परिचय दे दें. मन सहज और सरल बन जाएगा और वह कभी तफान नहीं करेगा. मन को समझाया नहीं गया. ईश्वर की उपासना कैसे करनी, थोड़ा सा उपाय मैंने आपको बतलाया. बाद में मैं आपको इसका पूरा उपाय बतलाऊंगा कि किस तरह से जीवन में सुन्दर आराधना करें.
"सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्वधर्माणां जैन जयति शासनम्"
प्रेम के माध्यम से जीवन की शुद्धता को प्राप्त करो, जीवन को मन्दिर जैसा पवित्र बना दो, अपनी वाणी में इतनी मिठास भर दो कि उसे सुनने वाला प्रेम के बन्धन में बन्ध जाय.
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