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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3DगुरुवाणीD है. माला किस तरह से फेरना, यह भी विवेक उन्हें नहीं होता. जाप करते समय तीन बातों का विशेष ध्यान देना है. एक तो समय निश्चित होना चाहिए. जब भी आप मन्त्र जाप करें मनोवैज्ञानिक दष्टि से समय का निश्चित होना बड़ा महत्त्वपूर्ण है. आपको सुबह चाय के समय चाय की याद आ जाती है, चाय का टाइम हो गया. दोपहर को तीन बजते ही उबासी आने लगती है, मालूम पड़ जाता है कि अब मुझे चाय पीनी है. खाने के समय खाना याद आ जाता है, बिना घड़ी देखे मालूम पड़ जाता है कि मेरे खाने का समय हुआ. इसी तरह से यदि आपने जाप का समय निश्चित कर लिया तो बिना कहे आपको मालूम पड़ जाएगा. अन्दर से स्वयं आवाज़ आएगी कि अब जाप का समय हो गया है, मुझे जाप पर बैठना है. आदत पड़ जाएगी. आदत डालने के लिए निश्चित समय चाहिए. जहां आप बैठते हैं, वही स्थान होना चाहिए, स्थान परिवर्तन नहीं. करना क्योंकि जिस स्थान पर आप जाप करेंगे, आपके विचार-परमाणु वहां ऐसा वातावरण बना देते हैं कि आप के जाते ही वे परमाणु आपके मन को स्थिर करने में सहायक हो जाते हैं. आप रात्रि में जहां सोते हैं, अगर उसी कमरे में आप सोने के लिए जाएं तो वहां के परमाणु ऐसा वातावरण निर्मित कर देते हैं कि जाते ही आपको निद्रा आने लगेगी परन्तु यदि आप दूसरी जगह सोएं, किसी दिन तीसरी जगह सोएं तो वातावरण निर्माण करने में समय चला जाएगा और आपको जल्दी नींद नहीं आएगी, मन बैचेन हो जाएगा. इसीलिए जाप जहां पर करते हों, उसी स्थान पर करें. वहां का वातावरण ऐसा निर्माण हो जाएगा, आप जाकर बैठे और आपके मन के अन्दर वह वातावरण असर करेगा. जाप में, मन को स्थिर करने में, वह वातावरण, आपको सहयोग देगा. स्थान निश्चित होना चाहिए, समय निश्चित होना चाहिए. जाप की संख्या निश्चित होनी चाहिए. एक माला गिने, कल दस माला गिने फिर एक माला गिने. फिर दोष देते हैं माला को, ऐसा नहीं होना चाहिए. कई लोग कहा करते हैं - - "माला तो मन की भली और सब काष्ठ का भार" क्या लकड़ी का भार उठा कर के चलना, कोई मतलब नहीं? माला ने जवाब दिया कि आप मुझे क्यों बदनाम करते हैं. "माला तो भली काष्ठ की, बीच में बोया सूत, माला बेचारी क्या करे, जपने वाला कपूत." उस जपने वाले का ठिकाना नहीं, आप मुझे क्यों बदनाम करते हैं. अरे मैं तो निर्दोष हूं. हरेक की धर्म साधना में सहायक बनने वाली हूं माला हमेशा नाक और नाभि के बीच में होनी चाहिए. जब भी आप घर में अपने इष्ट का जाप करें, तो उस समय माला की मुद्रा नाक और नाभि के बीच में होनी चाहिए. नाभि से नीचे माला नहीं जानी चाहिए.. नाक से ऊपर माला नहीं जानी चाहिए. इसका यह शास्त्रीय प्रमाण है और जब भी माला India वन - 81 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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