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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी ___ इंसान जैसा करता है, वैसा ही भोगता है, वैसा ही फल उसको मिलता है अपने कर्म से ही अपने कार्य से संसार का परिभ्रमण करेगा. "स्वयं तस्मात् विमुच्यते" व्यक्ति अपने प्रयत्न द्वारा वासनाओं से मुक्त होकर संसार से मुक्त बनता है. पशुत्व और प्रभुत्व दोनों शक्तियां आपमें निहित हैं. निर्णय आपको करना है, कि किस शक्ति को साकार करना है यदि पशत्व में रुचि है तो आप अपनी ऊर्जा का गलत दिशा में प्रयोग करेंगे और यदि प्रभुत्व की उपलब्धि चाहिए तो आपकी ऊर्जा सद्गामी बनेगी. दोनों अवस्थाओं में शक्ति की समभाग रूप से आवश्यकता है, राम बनने के लिए भी शक्ति चाहिए और रावण बनने के लिए भी, कृष्ण के लिए भी, कंस के लिए भी, चाहे महावीर बनो, चाहे गौतम बुद्ध बनो चाहे देवदत्त. शक्ति की आवश्यकता दोनों के लिए है. दोनों परिस्थितियों में शक्ति की असमानता नहीं थी, असमानता थी तो वह सिर्फ उस शक्ति के प्रयोग की प्रक्रिया में थी. जब व्यक्ति अपनी शक्ति को ऊर्ध्वगामी बना लेता है तो वही शक्ति या ऊर्जा योग-शक्ति के नाम से परिचय प्राप्त करती है, और यदि उस शक्ति को वह अधोगामी रूप दे देता है तो वही शक्ति, भोग-शक्ति के नाम से पुकारी जाती है. शक्ति तो एक है उसके प्रयोग अलग-अलग हो जाते हैं, उसी प्रयोग की भिन्नता का परिणाम है कि वह नर और नारायण, शिव और शव जैसी महान असमानता को जन्म देता है, भूतकाल में किया गया ऊर्जा का गलत उपयोग हमारे लिए वर्तमान में संसार रूपी सैन्ट्रल जेल बन कर उपस्थित हुआ, जिसके हम कैदी बनकर आए, अपराधी बनकर आए और दण्ड भोगने के लिए कर्मवश होकर जीवन जीना पड़ा. जीव को जड़ (कर्म) के अधीन रहना पड़ रहा है. संत तुलसी दास ने कहा कर्म प्रधान विश्व करि राखा. जो जस करहिं सो तस फल चाखा ॥ जो व्यक्ति जैसा कार्य करेगा, उसके अनुसार उसको वैसा ही फल भुगतना पड़ेगा. यह तो आपको देखना है कि मैं कैसा कार्य कर रहा है. मेरे कार्य में मेरी आत्मा को संतोष है कि नहीं. मेरे कार्य से मेरी आत्मा कहीं रुदन तो नहीं करती. आत्मा की पुकार हमनें कभी आज तक सुनी ही नहीं. कभी अपने कार्य में वह विश्वास पैदा ही नहीं किया. ___ कर्त्तव्यनिष्ठ बनिए. धर्म शब्द की परिभाषा में अपने कर्त्तव्य को ही महावीर ने धर्म कहा. सत्कार्य करना ही धर्म है. शुभ कार्य में प्रवृत्ति जीवन का परम धर्म है. जीवन को सदाचारी बनाएं, सत्यनिष्ठ बनाएं, सत्कार्य का आग्रह करें. तभी जा कर के व्यक्ति का जीवन धर्म सक्रिय बन पाएगा. ऐसा कार्य करें कि आपकी आत्मा को तृप्ति मिले, जिससे मानसिक प्रसन्नता मिले कि यह कार्य मैं कर रहा हूं और इससे मुझे बड़ा आनन्द है. 7A For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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