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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - : गुरुवाणी एक की सभी आत्माओं की, प्राणिमात्र की मैं सद्भावना प्राप्त करने वाला बनूं और परोपकार उसी प्रेम का व्यावहारिक रूप है. जहां तक प्रेम नहीं आएगा, परोपकार आ ही नहीं सकता. वह तो प्रेम के द्वारा, जिसे आप दयालुता कह लीजिए, करुणा कह दीजिए, आन्तरिक वात्सल्य कह दीजिए • पर्यायवाची, समानार्थी, अलग-अलग शब्द हैं परन्तु आशय तो हृदय के अन्दर प्राणिमात्र के प्रति मैत्री या प्रेम का भाव आना ही चाहिए. 'धर्मबिन्दु' के प्रथम अध्याय के प्रथम सूत्र में इसका परिचय दिया है कि धर्म का प्राण मैत्री है, प्रेम का तत्त्व है परन्तु आज का इंसान उससे बहुत दूर जा रहा है. परिवार में भी आज ऐसी समस्या है पिता और पुत्र के बीच आज दीवार खिंची हुई है. जहां पिता-पुत्र में भी भेद होगा तो फिर परमात्मा के अभेद को कैसे पा सकते हैं. अगर परिवार के अन्दर ही समस्या है तो संसार का समाधान आप कैसे कर पाएंगे. समस्याओं का समाधान प्रेम के माध्यम से ही आपको खोजना होगा और जैसे ही आप प्रेम के तत्त्व को विकसित करेंगे. बिना मांगे, बिना आमंत्रण आपको पूर्णता मिल जाएगी. पूर्ण बनने के लिए ही प्रयास है और वही जीवन की यात्रा है, मैं पूर्ण बनूं, परमेश्वर बनूं, आत्मा के अन्दर से परमात्मा को प्राप्त करने वाला बनूं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ये सारे ही पुरुषार्थ तभी सफल हो पाएंगे, जब अन्दर प्रेम की भूमिका हो. रामचन्द्र जी के प्रेम का इसीलिए मैंने पूर्व में आपको परिचय दिया. उनके अन्दर कितना अद्भुत प्रेम का तत्त्व था. महान् योगी पुरुषों के जीवन की घटनाओं को देखिए, आपको प्रेम का तत्त्व नज़र आएगा. इसीलिए अपने जीवन में वे महानता पा सके. प्रेम तो बलिदान देता है. प्रेम जीवन का सर्वस्व अर्पण करने को तैयार होता है. परन्तु हमारे अन्दर वह भावना कहां ? कुछ ऐसी बाते हैं जिनका परिचय प्राप्त करना है. प्रवचन के द्वारा उस परोपकार की गहराई तक उतरना है. जीवन में प्रयोग द्वारा अपने कार्य से उसे गतिशील बनाना है. परोपकार के द्वारा प्रेम की भावना को सक्रिय रूप देना है ताकि आप जीवन में कुछ कर सकें. कभी रास्ते में दीन-दुःखी आत्माओं को देखिए कैसे जीते हैं, कैसी दशा है कभी विचार आता है कि इनका दुःख और दर्द मैं कैसे दूर करूं ? टॉलस्टाय रास्ते पर चल रहा था उस समय बड़ी भयंकर ठण्ठ पड़ रही थी, बर्फ गिर रही थी, स्नोफाल हो रहा था • एक बेचारी गरीब बुढ़िया ठिठुर रही थी. टालस्टाय ने देखा कि अगर थोड़ा समय और इस तरह से यह निकाल देगी तो बेचारी मर जाएगी. उसके पास एक ओवरकोट था, निकाला और अच्छी तरह से बुढ़िया को ढक दिया. गोदी में उठाकर उस बुढ़िया को ले कर ऐसी जगह पर बैठाया कि जहां ठण्डी का प्रकोप कम हो. वह अपनी डायरी में लिखता है कि मेरे अन्दर ऐसी भावना आई और इस कार्य से मेरी आत्मा को संतोष मिला. दयालु बनने के लिए वह लिखता है कि "डज़ नाट कॉस्ट 72 For Private And Personal Use Only पर
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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