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-गुरुवाणी
अंगठाछाप इंसान ऐसा महान दार्शनिक निकला, कि मेरा बोलना बन्द कर दिया. ग्रामीण व्यक्ति था, भोलापन उसके चेहरे में दिखता था. उस व्यक्ति ने हाथ जोड़कर मुझे निवेदन किया “क्षमा करो महाराज! आपको मेरे निमित्त से दुःख हुआ. मेरा कोई और आशय नहीं - आप एक बार पूछो या दस बार पूछो, वह गांव कितनी दूर है? आप मेहरबानी करना और क्षमा करना, वह गांव कभी पूछने से नहीं, चलने से आएगा. ____ मैंने कहा पूछना बन्द, चलना शुरू. समझ गए, आधा घण्टा हुआ गांव में पहुंच गया. मैंने कहा कि उस आदमी को बुला कर के लाओ. उस आदमी को बुलाया और कहा कि तुने मुझे बहुत बड़ी शिक्षा दी, मैंने उसको धन्यवाद दिया. देखिए, पढ़ा-लिखा नहीं था, हृदय की भाषा थी और हृदय की भाषा में कहा, कोई कृत्रिमता नहीं थी, बड़ा सहज था और उसकी बात ने मेरे ऊपर असर किया. मैं उस इंसान को आज तक नहीं भूला. __ मैं भी आपसे यही कहूंगा कि आप पूछना बन्द करिए और चलना शुरू करिए. आज तक आप पूछते चले आए - परमात्मा कहां, मोक्ष कहां? यह कोई पूछने की बात है, चलना शुरू करिए, लक्ष्य आ जाएगा. चलना है नहीं-और मोक्ष चाहिए, कहां से मिलेगा.
___ "चरैवेति चरैवेति बहुजन-हिताय बहुजन-सुखाय" बुद्ध ने कहा है तुम चलो, तुम आगे बढ़ो – अनेक आत्माओं के कल्याण के लिए, इस आत्म-कल्याण की भावना से, मोक्ष-मार्ग की तरफ आगे बढ़ो. संसार की वासना से आपको ना है, चलना शुरू कीजिए. कैसे चलना है, उसका मार्गदर्शन, प्रवचन से आपको रोज़ मिलता है. लक्ष्य निश्चित करके चलना है और वहां तक जाने के लिए दो ही रास्ते हैं - परोपकार या प्रेम. प्रेम का माध्यम या परोपकार का माध्यम, दो ही माध्यम है. मैं कैसे उस आत्मा का भला करूं. दुःखी आत्माओं के दुःख को, दर्द को, कैसे दूर करने वाला बनूं. यह मंगल-कामना आपमें आनी चाहिए.
प्रेम और मैत्री का गुण विकसित होना चाहिए. यह ऐसा तत्त्व है - जो परमात्म-तत्त्व को आकर्षित करता है. आत्मा के गुणों को विकसित करता है. आत्मा को निर्भयता प्रदान करता है.
हमारे यहां महावीर की भाषा में, जैन दर्शन की प्रक्रिया में - सामायिक को इसीलिए महत्त्व दिया गया है क्योंकि वह समत्त्व की भावना को उत्पन्न करता है. जगत् में समदृष्टि से रहने की कला आपमें विकसित करता है और परम्परा में आपको परमात्म दशा का भोक्ता बनाता है. वह धर्म को जन्म देने वाली मंगल क्रिया है. परन्तु उसके रहस्य को, उसकी वैज्ञानिक प्रक्रिया को हम समझ नहीं पाए और औपचारिक दृष्टि से क्रिया कर लेते हैं. जड़ता आ जाती है, सक्रियता नहीं आ पाती. चैतन्य जागृत नहीं हो पाता है. क्रिया के अर्थ और रहस्य को हम समझ नहीं पाते.
प्रत्येक धर्म में ध्यान की प्रक्रिया में समत्त्व को पाने की भूमिका छिपी हुई है. कैसे मैं वह प्रेम प्राप्त करूं - जगत की सभी आत्माओं तक मेरा प्रेम व्यापक बन जाए. जगत
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