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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HINRAHARHARI तस्वबिन्दुः स्थानके जाय. उपशम, क्षयोपशम, अने क्षायिक ए त्रण निश्चय समकितछे. ३१९ तीर्थकर नामकर्म, क्षयोपशम समकिती वा, क्षायिक समकिती जीव, बांधेछे. उपशम समकितनो काल अल्पछे माटे तीर्थकर नामकर्म बंधातुं नथी. तीर्थंकर नामकर्म वांधेलंछे एवो क्षयोपशम समकितवालो जीव पडीने प्रथम गुणस्थानकमां आवे अने त्यां अन्तर्मुहूर्तथी अधिक रहेतो तीर्थकर नामकर्मनां दलिक उवेली नाखे अने अंतर्मुहूर्तमा समकित पार्छ पामे तो तीर्थकर नामकर्मनां दलिक उवेले नहीं. ३२० अभव्यने दीपक समकित होय. ३२१ आयुष्यनो पूर्वमां बंध करीने क्षायिक समकित पामेलो जीव चार भव करेछे, अथवा त्रण भव करेछे. चार भव करे तो बीजो भव युगलिकनो थाय अने त्रीजो भव देवता वा नारकीनो करे, अने चोथो भव मनुष्यनो करे. क्षायिक समकितनी पहेला असंख्याता वर्षनो आयुष्यनो बंध करे तो मरीने युगलिक थाय. ते विना नहि. संख्यात वर्षेनो आयुष्य बंध कर्या पछी कोइ जीव क्षायिक समकित पामे नहीं. For Private And Personal Use Only
SR No.008673
Book TitleTattva Bindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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