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बदु:
३२२ क्षायिक समकितनी प्राप्ति मनुष्य गतिमांछे.
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( १०७ )
३२३ आयुष्यबंध कर्या विना क्षायिक समकित पामे तो जीव तद्भव मुक्ति पामेछे,
३२४ छप्पन्न अन्तरद्वीपना युगलीकमां क्षायिकसमकिती जीव मरीने जाय नहीं. अन्तरद्वीपना युगलिकमां उपशम, क्षयोपशम, अने सास्वादन ए ऋण समकित होय अने ते सिवायना युगलिकमां चार समकित होय.
३२५ भुवनव्यति, व्यंतर अने ज्योतिषीमां उपशम, क्षयोपशम, अने शास्वादन, एत्रणसमकित होय, अने वैमानिकमां चार समकिवहोम,
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३२६ त्रीजी नरक सुधी चारे समकित होय. अने तेथी उपर क्षायिक विना ऋण समकित होय.