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तवबिन्दुः
( १०५ )
एमजो होय तो तीर्थंकरे कोइना गुण प्रशंसवा न जोइए, कारण के तीर्थंकरथी सर्व जीवो होनछे.
श्रावक प्रज्ञप्ति.
३१६ जावणं, अयंजीवे, एयइ, वेयइ, चलइ, फंदइ, तावणं अठविहबन्ध एवा, सत्तविहबन्धएवा, छव्विहबंध एवा, एगविहबंध एवा, इत्यादि ज्यां सुधी जीव कंपेछे, चालेछे, धडकेछे, त्यां सुधी आठ प्रकारनो कर्मबन्ध करेछे, सात प्रकारनो, छ प्रकारनो वा एकविध कर्म बंध करेछे, समये समये आ प्रमाणे कर्मबंध करेछे.
३१७ अनादि मिथ्यात्ववाळाने सैद्धांतिकना मत प्रमाणे प्रथम क्षयोपशमसम्यक्त्व अने कार्मग्रन्थिक मत प्रमाणे प्रथम उपशम सम्यक्त्व थायछे.
३१८ अनादि मिथ्यात्वनो क्षय करोछे एवो जीवो, चढतां त्रीजा गुणस्थानके जाय नहीं. चोथे, पांचमे, छठे, अने सातमे गुण
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