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तत्वबिन्दु. ३११ मिथ्याष्टिना दयादि गुणनी अनुमोदनामां पार्थस्थादिनी पेठे
दाष नथी.
३१२ मिथ्याष्टिने सकामनिर्जरा होय तो सम्यग्दृष्टिथी शो विशेष!
एम कोइ कहेछे तेणे मिथ्यादृष्टिने शुक्ल लेश्याना सदभावे केवलीथी शो विशेष एवो पण संदेह धरवो.
३१३ सम्यग्दृष्टिज क्रियावादी शुक्ल पाक्षिक होय पण मिथ्यादृष्टि
नहीं एम कोइ कहेछे ते मिथ्याछे.
३१४ मोक्षाशयथी निर्जरा ते मार्गानुसारिने अंशथी सकाम निर्जरा
जाणवी.
३१५. हीन मिथ्यादृष्टिना गुणने उच्च गुणस्थान वी सम्यग्दृष्टि, केम
प्रशंसा करे ? एम कोइ शंका करेछे ते योग्य नथी. कारण के
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