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________________ था । उन्होंने अपने इस पुरुषार्थ में अपूर्व सफलता भी प्राप्त की थी। हजारों लोगों को व्यसन मुक्त कर उन्हें शांतिपूर्ण एवं उज्ज्वल जीवन जीने का मार्गदर्शन दिया था। आचार्यश्री ने अलग-अलग प्रान्तों में विचरण करने के साथ-साथ वहां के महानगरों में चातुर्मास भी किये थे, जिनमें बम्बई, पना, कलकत्ता, अमदाबाद, जामनगर एवं पाली आदि नगर प्रमुख है। आचार्यश्री महानगरों के साथ-साथ गाँवों में भी चातुर्मास करने के विशेष इच्छुक थे । उन्होंने कई छोटे गाँवों में भी चातुर्मास किये थे, जिनमें सादड़ी, राणी, लोदरा एवं अड़ोदरा आदि गाँवों के चातुर्मास उल्लेखनीय है । शिष्य-प्रशिष्य समुदाय पूज्य आचार्यश्री के पावन उपदेशों एवं उनके उज्ज्वल जीवन से प्रभावित होकर कई महान् आत्माओं ने संयम ग्रहण किया । निम्नलिखित आटों साधु भगवन्तों ने पूज्य आचार्यश्री के पास ही उनके शिष्य के रूप में दीक्षा ग्रहण की थी । २. पुत्र पंन्यास श्री सूर्यसागरजी म. सा. २. पुरुष आचार्यश्री भद्रबाहुसागरसूरीश्वरजी म. सा. पूज्य प्रवर्तक श्री इन्द्रसागरजी म. सा. ४. पूज्य आचार्यश्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी म. सा. ५. पृध्य मुनि श्री कंचनसागरजी म. सा. ६. पूज्य गणिवर्य श्री ज्ञानसागरजी म. सा. ७. दृश्य मुनि श्री नीतिसागरजी म. सा. ८. पूज्य मुनि श्री संयमसागरजी म. सा. २६
SR No.008597
Book TitleKailashsagarsuriji Jivanyatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year1985
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati & History
File Size1 MB
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