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________________ पूजा के सन्दर्भ में मुनिश्री के साथ बहुत देर तक विचारविमर्श किया और अन्ततः मुनिश्री को एक बात के लिए L तो मना ही लिया कि कम से कम आप मूर्तिपूजा का विरोध तो कभी न करें ।' मूर्तिपूजा के सम्बन्ध में सत्य एवं नवीन जानकारी मिल जाने के बाद काशीराम के मन में उस पुस्तक के लेखक को प्रत्यक्ष रूप से मिलकर अपनी जिज्ञासा को उनके समक्ष प्रकट करने की इच्छा जाग्रत हुई । मूर्तिपूजा संबंधी उस पुस्तक के लेखक थे बीती सदी के अजोड़ विद्वान और योगनिष्ठ आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरीवरजी म. सा, जिन्होंने जैन तत्वज्ञान - आत्मज्ञान-दर्शन आदि अनेक विषयों पर स्वतंत्र रूप से लगभग 125 अमर ग्रन्थों का विराट सर्जन किया । गुजरात की यात्रा पर उन अपूर्व प्रतिभाशाली, योगनिष्ट आचार्यश्री को मिलने काशीराम गुजरात की यात्रा पर रवाना हुए पर अफसोस कि गुजरात आने के बाद उन्हें जानने को मिला कि बहुत समय पहले ही पू. आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. का स्वर्गवास हो गया था । अतः काशीराम पूज्य योगनिष्ठ आचार्यश्री के शिष्य परम पूज्य आचार्यश्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी म. सा. से मिले । १. आचार्यश्रीने मूर्तिपूजा सम्बन्धी काशीराम की समस्त जिज्ञासाओं का शांतिपूर्वक समाधान किया । उसके बाद इन्हीं पूज्य आचार्यश्री की प्रेरणा से काशीराम शत्रुंजय ( पालीताणा ) की यात्रा के १७
SR No.008597
Book TitleKailashsagarsuriji Jivanyatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year1985
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati & History
File Size1 MB
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