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________________ लिए गए । सत्य को जानने से पहले शत्रुजय की घोर टीका करने वाले काशीराम शत्रुजय की छाया में श्री आदिनाथ भगवान के दर्शन कर पावन बने । आत्मकल्याण के पथ पर किशोरावस्था से ही काशीराम का मन संसार से एकदन अलिप्त जैसा ही था और उन्हें आत्मकल्याण के पथ पर आगे बढ़ने की तीव्र इच्छा एवं अभिलापा थी। वे संसार के बंधनों में जखड़े रहना स्वयं के लिए ठीक नहीं समझते थे । गृहवास के दौरान भी व आत्मचिन्तन के लिए बहुत सा समय निकाल लेते थे। शजय को यात्रा स लौटने के बाद उन्होंने दारंगा तीर्थ पर प. पू. आचार्यश्री की तिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के पुनः दर्शन किये और इस नश्वर संसार को त्याग कर दीक्षा ग्रहण करने की अपनी भावना उनके समक्ष दर्शायी । माता-पिता और परिवारजन ता उन्हें दीक्षा देने के लिए किसी भी हालत में तैयार नहीं धे । लेकिन इधर काशीराम स्वयं संसार में रहने को भी बिलकुल तैयार नहीं थे। प. पू. आचार्यश्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी म. सा. ने मातापिता की मिना आज्ञा के दीक्षा न देने की अपनी लाचारी काशीराम के सामने प्रकट की, परन्तु काशीराम हरगिज मानने को तैयार नहीं हुए। उन्होंने तो आचार्यश्री को यहाँ तक भी कह दिया कि 'यदि आपने दीक्षा न दी तो मैं स्वतः ही साधु-वस्त्र धारण कर आपके चरणों में चैट जाऊँगा ।'
SR No.008597
Book TitleKailashsagarsuriji Jivanyatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year1985
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati & History
File Size1 MB
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