SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२२) नोने (ब्राह्मणोंने ) सम्यक्त्व न त्याग करा, अर्थात् जे महान पुनः तीर्थकरोके उपदेशसें सम्यक्त्व पाके दृढ रहे, तिनोंके संभदायमें आज भी भरत प्रणीत वेदका लेश कमीतर व्यवहारगत सुनते हैं, सोही यहां कहते हैं । यत उक्तमागमे ॥ सिरिभरहचक्कवट्टी, आरियवेयागविस्सुऊकत्ता ॥ माहणपढणच्छमिणं, कहिअंसुहझाणववहारं ॥१॥ जिणतित्थेवुच्छिन्ने, मच्छत्तेमाहणेहितेठविया ॥ असंजयाण पूया, अप्पाणं करियातेतेहिं ॥ २॥ व्याख्या-श्रीभरत चक्रवर्ती आर्य वेदोंका कर्ता प्रसिद्ध है. भरतने आर्य वेद किसवास्ते करे ? माहनोंके पढने वास्ते, शुभ ध्यानके वास्ते, और जगत् व्यवहारके वास्ते । जिनतीर्थकरके तीर्थक व्यवच्छेद हुए वह आर्य वेद तिन माहनोंने मिथ्या मार्गमें स्थापन करे, और असंयति होके तिनोनें अपनी पूजा जगत्में करवाइ । इन वेदोंका विशेष निर्णय जैन तस्यादर्श ग्रंथसें जानना॥ ऋ. । सं. । अ. ३ । अ. २१ व. १२ । १३ । १४ ॥ ऊपर लिखी ऋचायोंका तात्पर्य यह है कि, विश्वामित्र ऋषि सोमवल्ली लेनेके वास्ते पंजाब देशमें आए, जहां शतदू और वियासा नदीयां मिलती हैं, अथ.त् जहां बैठके मैं यह ग्रन्थ रचता हूं, तिस जोरे गामसे तेरा (१३) मालके फासले पर जो हरिका पत्तन कहाता है, तिस जगे विश्वामित्र आए मालुम होता हैं. क्योंकि, इसि पत्तन (घाट) में शतद्रू और वियासा नदीयां मिलती है. बहुत अगाध पाणी देखके तीन ऋचायोंसें For Private And Personal Use Only
SR No.008534
Book TitleAtma Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages113
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Karma
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy