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( २३ )
नदीयोंकी स्तुति करी कि, मेरे उत्तरनेको मार्ग देओ; तव नदीयोने कहा कि, हमको इन्द्रकी आज्ञा निरंतर बहने की हैं, इस वास्ते हम चलनसेंबंध नहीं होवेंगी. इसतरह परस्पर नदीयोंका और विश्वामित्रका वार्तालाप हुआ, और विश्वामित्रनें नदीयोंकी स्तुति करी तब विश्वामित्रके रथकी धुरीसेंभी हेठा पाणी हो गया. तब विश्वामित्र सोमवल्लीके लेने वास्ते पार उत्तरके आगे गया. शतद्रू और विषाद इनका नाम मूल श्रुतिमें हैं इति ।
अब हे पाठक गणो ! तुम विचार करोके कि, वेद ईश्वर वा ब्रह्मा वा ब्रह्मका रचा वा अनादि अपौरुषेय किनारे सि हो सकता है ? क्योंकि सर्व सूक्तोंके न्यारे न्यारे ऋषि है, और जिन २ ऋचायोंके जे जे ऋषि हैं, तिन तिन ऋषियों ने तप करके ऋचायें प्राप्त करी हैं; और प्रथम मानकरी है तिन तिन ऋचायोंके ते ते ऋषि हैं; ऐसा भाषा में लिखी हैं.. और दशोमंडलों के द्रष्टा दश ऋषियोंके नाम लिखे हैं; जितनी चा जिस मंडल में हैं तिन सर्वका स्वरूप जिसने
देखा सो मंडलके द्रष्टा है. विश्वामित्र जे नदीयो ऋचायों पठन करी वे ऋचायों परमेश्वरकी रची क्यों कर सिद्ध होसकती है ? ऐसें ही नदीयोंने गायन करी ऋचायों - इसी तरें पूर्ण ऋगवेद भरा है. जे कर कहोंगे. अग्नि, सूर्य, अश्विनौ, यम, ऋन, उषा, वायु, वरुण, मैत्रीवरुण, इंद्रादि ये सर्व ब्रह्मरूप है, इस वास्ते जो इनकी स्तुति है, सो ब्रह्मकी स्तुति है. तब तो कुत्ते, बिल्ले, गधे, सूयर, गंदकीके कीडे, इत्यादि सर्व जंतुयोंकी स्तुति वेदमें क्यों नहीं करी ! और जगे जगे यह लिखा है कि, हे इन्द्र ! तुं हमारे शत्रुयोंका नाश कर, असुरोंका नाश कर, और हमको धन दे गौयां दे, पुत्र दे, परिवार दे, राज्य
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