________________ [चतुर्थोल्लासे न्यायः 1] न्यायार्थसिन्धु-तरङ्गकलितो न्यायसमुच्चयः / 239 55 60 "ओनजैकबीडे" नजते ।के-ओदित्वात् तो ने, ऐदिवाच अति-सनि इटि ट्तेर्दित्वे "व्यञ्जनस्थानादेः"[४.१. "डीयश्वि." [4.1. 61.1 इति क्तयोरिनिषेधे-नग्नः, | 44.1 इति तो लुकि-अटिहिषते, विपि “पदस्य" [2.1. मग्नवान् , स्वार्थ के स्त्रियां-नग्निका-अरजाः स्त्री। प्रानजिष्ट, / 89.] इति संयोगान्तलोपे-अद, टान्त दोपान्त्यस्य तु 'अत्' अणोपदेशवात् 'अदुरुपसर्गान्तरो०" [2.3. 66.] इति / इति / अत्र 'अदत्' इत्ययं ताम्तोऽपि रूपादिसाम्याट्टान्तेषु 5 नस्य णो न // 88 // पठितः / अग्रेऽपि पाठव्यतिक्रमेऽयमेवेश एव वा लाघवादि- 45 "मृजैकि संपर्चने" मृक्त / ऐदित्वात् "डीय-हेतुरूहनीयः // 103 // श्वि." [4. 4, 61.] इत्यनेन क्योरिनिषेधे-मृक्तः, / "मिटुण नेहने" स्नेहनं स्नेहयोजनम्, उदित्त्वान्ने-मिण्टमृक्तवान् // 89 // / यति // 104 // "जैप वर्जने" "रुधा स्वराच्छो नलुक च" [3. 4.82.] “सुदृण् अनादरे" डेऽषोपदेशत्वात् षत्वाभावे-असुसुदृत् , 10 इति श्रेऽन्तौ वृञ्जन्ति, ववर्ज / घजि जस्य गत्वे-वर्गः / सनि च तथैव-ससयिषति, धोपदेशत्वे तु षत्वमपि स्यादेव, 00 वणतीत्यादि तु "वृचैप वरणे" इत्यनेनापि स्यात् // 90 // सयतीति चोभयोरपि // 105 // "मर्जण शब्दे" मर्जयति / क्त-मर्जिता-रसाला // 91 // शटि शलिण श्लाघायाम्" शाटयते / अटि-शाटः / अथ टान्तात्रयोदश-"शौट गर्वे" शोटति, शुशोट / ऋदि. | "णिवेत्ति०७ 5. 3. 111.] इत्यने स्त्रीत्वात्स्वात् णौ हे "उपान्त्यस्य." [4. 2. 35.] इति हम्बा- शाटना // 106 // 15 भावे-अशुशौटत् // 92 // शलिण्-शालयते // 107 // "यौट सम्बन्धे" सम्बन्धः-श्लेषः / यौटति, युयौट / ऋदि- अथ ठान्तौ द्वौ-"रुटि प्रतीघाते" द्युतादिरयम् / रोठते, स्वातू-अयुयौटत् / के-यौटकं-युग्मम् / यौटितः, // 93 // रुरुटे / अद्यतम्या "धुन्धः" [3. 3. 44.] वाऽऽत्मने___ "मेट ट्र म्लेट लौट उन्मादे"। मेटति, नेटति, म्लेटति, ' पदम् , पक्षे "शेषात्." [3. 3. 120.] इति परस्मैपदं च लौटति / ऋदित्त्वादुपान्त्यह्रस्वाभाये अमिमेटत् , अमिनेटत् , तत्र "दिद-धुतादि." [ 3. 4. 64.] इत्यडि-अरूठत् , 20 इत्यादि // 94 // 25 // 96 // 97 // : आत्मनेपदे त्वकोऽप्राप्त्या-अरोठिष्ट // 108 / / "स्फटु विशरणे" उदित्वानागमे स्फण्टति वस्त्रम् / किति "ठण हिंसायाम्" चुण्ठयति // 109 // नस्य लुगभावे-स्फण्ठ्यते / णिगि स्वार्थे णिचि वा अथ दश डान्ताः-"चुडु अल्पीभावे" उदित्वान्ने-चुण्डति, स्फण्टयति // 98 // चुचुण्ड / अचि-चुण्डः // 11 // “मुटु प्रमर्दने" मुण्टति / अचि-मुण्टः / “ते हुन्ति कुण्ट- : ____“पिड सङ्घात-शब्दयोः" अचि-पेडा-वस्त्रादिभाजन25 मुण्टा" // 99 // विशेषः // 111 // 6 "नट नृत्ती" अणोपदेशत्वात् णत्वाभावे प्रनटति / णौ- ___ "कड्ड कार्कश्ये" विपि “पदस्य" [2.1. 89.] इति प्रनाटयति, नतावेवास्य घटादित्वादत्र न हस्वः / गोपदेशस्य संयोगान्तलोपे "विरामे वा"१.३.५१.1 इति डस्य घटादेस्तु-प्रणटति, प्रणटयतीत्यादि स्यात् // 10 // ! विकल्पेन टत्वे-कड़, कट् / 'कड्' इति दोपधपाठे तु 'कद्, ___ "णटि नतौ च" चालतो / “पाठे धात्यादः०" [2.3. / कत' इति स्यात् / कडुतीति तूभयोरपि // 112 // 3097.] इति णस्य ने कृते णोपदेशत्वात् “अदुरुपसर्ग०" "भड अभियोगे" विपि प्राग्वत् कार्य-अड्ः, अट् / 70 [2. 3. 77.] इति णत्वे प्रणटते। नेटे, नेटाते, नेटिरे // 10 // सनि तु ड्डेत्वेि -अडिड्डिषति, दोपधस्य तु विपि प्राग्वत् अद्, ___“अटि अति हिंसा-ऽतिक्रमयोः" अतिक्रमः-उल्ला- अत्, सनि"न बदनम्" [4.1.5.] इति दस्य द्विस्वनम् / सनि इटि स्टेर्द्वित्वे "व्यञ्जनस्यानादेः" [4. 1.44.] निषेधे डेरेव द्वित्वे-अद्धिडिषतीत्यादि च स्यात् / अतीत्यादि इति टस्य लुकि-अतिषिते / 'अट्ट' इति दोपान्त्यस्य तु तूभयोः समम् // 113 // 35 सनि इटि "न बदनम्" [4.1.5.] इति दस्य द्वित्व- / "चुड़ हावकरणे" हाव-भावसूचनम्। विपि प्राग्वत्-75 निषेधात् "स्वरादेः" [4. 1.4.] इति द्वितीयांशस्य टेरेव / चुद, चुड, दोपधस्य तु 'चुत्, चुद' इति / चुड़तीत्यादि द्वित्वम्, "तवर्गस्य." [2.3.60.1 इति दो डे तस्य / तुभयोरपि // 15 // "अघोषे प्रथमः " 2.3.50.1 इति टे च 'अविटिषते'. "तुड़ तोडने" तोडन-दारणम् , यथा-"तुइत्यहः सकल इति स्यात् / 'अट्टते' इति तूभयोरपि स्यादेव / एवमट्तेरपि मचिरात् तोडयत्यश्रियं च / " इति कविरहस्ये // 15 // 40 बोध्यम् // 102 // "शिक्षिडा अध्यक्ते शब्दे" श्वेडति, अक्ष्वेडीत् / जीवात् 80