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________________ युक्ति आरटी. भा. प्रणरणकमल (पटला भक्तिये करीने एतनो) विनोना विद्यम चेत् पूर्व विद्यते, तदा सतः पुनः करणेन पिष्टपेशणं संपन्नं, चेन्न विद्यते तदाऽसतः करणायोग इत्युभयथाप्यत्र निरर्थकैव श्रीमतां प्रवृत्ति रिति चेन्न, अस्त्येव स्याद्वादरत्नाकरादिशास्त्रेषु युक्तिप्रकाशविस्तार स्तथाप्यनया गत्या तत्र नास्तीति सार्थकैव प्रवृति रत्रेति तथाविधशास्त्रस्था अतीवगहनगंभीरा युक्तयो लालित्येन मुकरतया चात्र विस्तार्यत इत्यर्थः ॥ इति प्रथमवृत्तार्थः ॥ १॥ टी. भा.-नमेल छे इंदोनो समूह जेमने एवा श्रीमहावीरप्रभुने नमीने युक्तिप्रकाशनी स्वोपज्ञ वृत्ति आदरपूर्वक हुं करूंछु ॥१॥ टी. भा.-प्रणाम करीने एटले श्रीवर्धमानप्रभु (एटले) श्रीमहावीरनामना आ अवसर्पिणीमा (थयेला ) जे || छेल्लाजिन, तेमना चरणकमल (एटले) पगो रूपी कमलने प्रणमीने (एटले) नमीने युक्तिप्रकाशनामनो ग्रंथ हुं विस्तार छु, एवो अहीं अन्वय छे. त्यां प्रगटभक्तिये करीने ए करणपद वीरप्रभुना प्रणामरूपी पदनुं विशेष रूप छे वली प्रगटभक्तिरूप प्रणामने उत्कृष्ट मंगलपणुं होवाथी (तेनो) विनोना समूहने शांतकरवा माटे आदिमां उपान्यास कर्यो छे. अही शंका करेछेके घणां युक्तियोनेप्रकाश करनारां शास्त्रो विद्यमान छे, तोपछी शामाटे युक्तिप्रकाशनो विस्तार करवानो आदर करवो जोइये! एवी शंका माटे कहेछे के आत्मार्थे (एटले) पोतामाटे (अर्थात्) पूर्वे भणेला ज शास्त्रो आकरवाना आदरथी विशेष प्रकारे स्मरणवाला थायछे; पोताना संस्कारने प्रफुल्लित करवारूप स्वार्थ सधाय एवो अर्थ छे. (वली) शंका करेछे के आशास्त्रमा अभ्यास अने अंगीकारने अपेक्षीने कोण अधिकारिओछे! ते कहे छे युक्तिप्रकाश केवोछे! जैनमंडन (एटले) जिन शासनने अनुसरनारी युक्तिओनुंज
SR No.008437
Book TitleYuktiprakasha Sutram
Original Sutra AuthorPadmasagar Gani
Author
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size1 MB
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