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• Prasad Manjari *
मंडप करना । १७३ ( यज्ञ मंडप वीस गज-हाथका बनाने का विधान तुला प्रदान के विषयमें है।) तोरणोंसे सुशोभित सोलह स्तंभोके मंडपमें चारों ओर चार द्वार रखना। मंडपके मध्यमें वेदिका और पांच आठ या नव कुंड बनाना । १७४ __ यज्ञकुंडका मान-एक हाथके यज्ञकुंडके तीन मेखलाएं और योनि बनानी । आगम एवं वेद-मंत्रसें विधिपूर्वक देवताओं को आमंत्रित करके यज्ञ होम करना । १७५ दशहजार आहुतियों के लिये एक हाथका, पचास हजार आहुतिओं के लिये दो हाथका, एक लाख आहुति के लिये तीन हाथका । दश लाखके लिये चार हाथका, त्रीश लाखके लिये पांच हाथका, पचास लाखके लिये छ हाथका, एसी लाखके लिये सात हाथका, एक करोड आहुतियों के लिये आठ हाधका यज्ञझुंड बनानेके प्रमाण है । १७६-७७ ग्रह पूजा आदि विवान के लिये एक हाथका बुंड बनाना । उसके चार तीन एवं दो अंगुलकी तीन मेखला अनुक्रम से करनी । १७८
वेदी उपर एक दो या तीन हाथका मंडल भरना । ब्रह्मा विष्णु एवं सूर्य के लिये सर्वतोभद्र मंडल भरना । १७९
सर्व देवताओंकी प्रतिष्ठामें भद्रं नामक मंडल भरना । तथा नव नाभि बाला लिङ्गोद्भव मंडल भरना । शिवप्रतिष्ठा में लिङ्गोद्भव तथा लतो लिङ्गोद्भव नामक मंडल भरना । १८० सर्व देवीओंकी पूजा प्रतिष्ठामें भद्र मंडल तथा गौरी तिलक नामका मंडल भरना । तालाब की प्रतिष्ठा में अर्धचंद्र मंडल धनुष्याकार भरना । १८१
स्थपति पूजन-विधिपूर्वक देव पतिष्ठा यज्ञयागादि करके सूत्रधार प्रमुख स्थपतिकी सन्मान पूर्वक पूजा करके भूमि, उत्तम प्रकार के वस्त्र, सुवर्ण रत्नादि के आभूषण द्रव्य, गौएँ, दास दासियां, गृह, घोडे आदि वाहन देकर संतुष्ट करना । अन्य काय कर्ता शिल्पिओं का भी योग्य रीतिसे पूजन करके अपनी अपनी योग्यता के अनुसार उन्हें वस्त्र भोजन ताम्बुल आदिसे सन्मान करना । १८२-८३ तत्पश्चात् यजमान अर्थात् गृहपतिको मुख्य स्थपति से इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिये कि -“हे स्थपते हमारा पुण्य प्रासाद पूर्ण हुआ।" इसके उत्तरमें स्थपति को कहना चाहिये कि-" हे स्वामिन् . आपका कार्य अक्षय हो ।” ५८४ ___ गुरु मार्ग-देव प्रासाद या राज प्रासाद वा अन्य भवनके निर्माण के लिये सर्व प्रकारका शिल्पज्ञान उसके लक्ष (ध्येय) एवं लक्षणोंका अभ्यास गुरु मार्गका अनुसरण करने से प्राप्त होता है। (गुरु शिक्षासे शिल्पके सर्व ज्ञान की प्राप्ति होती है। ) १८५