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* प्रासादमञ्जरी *
प्रतिमा स्थापित करनी । पाटडे-भारवटके आगे सभी देवताओंकी स्थापना करनी । उनसे भी आगे विष्णु एवं उनसे भी आगे ब्रह्माकी स्थापना करनी । गर्भगृहके मध्य में शिवलिङ्गकी स्थापना करनी । १६७
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अथ प्रतिष्ठा मुहूर्त -- पूर्वोक्त (श्लोक २७ में ) कहा हुआ सप्त पुण्याह दिन और प्रतिष्ठा करने से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है । सूर्य उत्तरायणमें हो उस समय प्रासादकी प्रतिष्ठा करनी शुभ है । १६८
प्रतिष्ठा के शुभ नक्षत्र - तीन उत्तरा : उत्तराषाढा, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तरा भाद्रपद, मूल, आर्द्रा, पूनर्वसु, पुष्य, हस्त, मृगशीर्ष, स्वाति, रोहिणी, श्रवण और अनुराधा इतने नक्षत्रोंको प्रतिष्ठा कार्य में शुभ जानना । १६९
वर्जनीय -- रिक्तातिथि, मंगलवार, नक्षत्रवेध नेष्टग्रह, दग्धातिथि, अपयोग, गंडात योग चर राशि और उपग्रह ये सर्व प्रतिष्ठादि शुभ कार्यमें त्याज्य हैं । १७०
शुभदिन शुभ मुहूर्त में शुभ ग्रह लग्नमें सौम्य ग्रह देखकर राज्याभिषेक देवप्रतिष्ठा और गृह प्रवेश कराना शुभ है । १७१
प्रतिष्ठामंडप -- प्रासाद के आगे या ईशान या उत्तर दिशा में प्रासादसे तीन पांच सात नौ ग्यारह या तेरह हाथकी दूरी पर प्रतिष्ठाके यज्ञमंडपका निर्माण करना । १७२ यह मंडप आठ दश बारह या सोलह हाथ तकके प्रमाणका समचतुरस करना | कुंडोकी अधिकता के कारण सोल हाथसे भी अधिक प्रमाणका सूत्रधार में ४९ विभाग गर्भगृहके कहते हैं और भी मत दिया है । सूत्रधार वीरपाल विरचित प्रासाद तिलक में और सूत्रधार राजसिंह विरचित वास्तुराज ग्रंथ ये प्रासाद मञ्जरीके नाथुजीके मतका समर्थन करते हैं । प्रासाद मंडनमें सूत्रधार मंडन भी यह मत बताते हैं । दोनों भ्रातृके एकी मत है | परंतु मंडन के अन्य ग्रंथ में भिन्न मत प्रदर्शित किया है। शिव विष्णवादि देव मंदिरोंमें विधि सहित कथित विभागो में स्थापित किये गये हैं । उनके पीठे प्रदक्षिणा मार्ग प्रथानुसार रहता है । किन्तु जैन प्रतिमाको पधरानेका विधान शास्त्रोक्त विधिसे देखने में आया नहीं है। बड़े बड़े जैन प्राचिन तीर्थोंमें भी नहीं है । बावन जिनालय या चोविस जिनालयको देवकुलिकाओं में कथित भागसे पधरानेका व्यावहारिक नहीं होता । दूसरे देवोंके लिये विभागसे स्थापन हो सकता है । जिन प्रभुके लिये तो विचारणीय है । जिन प्रभु " पट्टाधो यक्षभूताद्या " सूत्र के आधारसे स्थापना होती है । अठाइश विभाग जो कहे हैं ये अन्य देवोके लीये ठीक है । कहा हुआ विभाग प्रतिमाका कर्ण गर्भ में पादुका गर्भमें अथवा बाहु गर्भमें स्थापन करनेका शास्त्र प्रमाण है ।