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________________ 89 * Prasad Manjari - ___ अथ प्रतिमा दृष्टिमान३४-गर्भगृहके द्वारकी ऊचाईके आठ भाग करके उपरका भाग छोडकर सातवे भागके फिर आठ भाग करके उसके सातवे भाग पर देवद्रष्टि वृषाय-सिंहाय या ध्वजाय पर रखना शुभ है। १६५ उपरोक्त आठ भागो में से छटे भागके आठ भाग करके उनमें से पांचवें भाग पर लक्ष्मीनारायणकी द्रष्टि रखनीः शेषशायीन भगवान और मुखलिङ्गकी द्रष्टि द्वारके अर्धभाग पर रखनी । परंतु द्वारके नीचेका अर्ध भागका उल्लंघन करके (शिवलिङ्ग सिवाय) द्रष्टि न रखनी । देवता पद स्थापन- ३५गर्भगृहके पृष्ठ पाट-भारवटके नीचे यक्ष भूतादिकी करनी । ५ से १० हाथ तक के प्रासादके लिये प्रत्येक हाथ दो दो आंगुलकी वृद्धि करनी ११ से ५० हाथ तक के प्रासादके लिये प्रत्येक गज-हाथ एकैक अंगुळकी वृद्धि करनी यह उत्तम मान कहलाता है । __ ३४ देवता द्रष्टि संबंधमें विभिन्न ग्रंथोमें मत मतांतर कहे हुए हैं। यहाँ दिये हुए द्रष्टि विभाग में वृष, सिंह और ध्वज आय देनेका विधान है। ऐसा सू० मंडनका भी कथन है । इन दोनों भाईयों का मत, विश्वकर्मा प्रणीत ग्रंथो और अन्य कोइ भी प्राचिन ग्रंथोमें आय प्रमाण विषयक नहीं दिया गया है। एक पुराने ग्रंथ में गजांश शब्दका प्रयोग कीया हे किन्तु इसका अर्थ सातवाँ भागके बदलेमें कहा है नहीं के आय के हिसाबसे । ___ शिल्पि वर्ग तो विभागसे जहां द्रष्टि सूत्र बताया हो वहीं पर बराबर चक्षुकी पुतलीका गर्भका मिलान करता है। अब कितनेक जैन विद्वान द्रष्टि सूत्रमें आय मेलका आग्रह रखते है। ___ अपराजित सूत्र, क्षीराणव, दीपार्णव, समराङ्गण सूत्रधार, ठक्करफेरु वास्तुसार आचार्य वसुनंदी कृत प्रतिष्ठासार-ये सभी ग्रंथकार द्रष्टि सूत्र में एक मत नही है। बहुत अंतर है। इसी प्रकार प्रतिमा स्थापन पद विभाग विषयमें भी यही बात है। दृष्टि सूत्रके आये हुए मान से आयका मेल बिठाते हुए दृष्टि नीची रखनी पड़ती है। यह प्रश्न बड़ा विवादास्पद है। ऐसा हम मानते हैं। ‘देवता मूर्ति प्रकरण' और 'ज्ञान रत्नकोश' ग्रंथमें द्रष्टि विषयमें विभिन्न मत है। इस सम्बन्ध में बहुत विस्तार से दिपार्णव ग्रंथके अनुवाद प्रकाशन में कोष्टकादि से स्पष्टिकरण किया गया है। ३५ देवता पद स्थापन विभागमें भिन्न भिन्न मत है। क्षीरार्णव, दीपाव, अपराजित सूत्र, ज्ञान रत्नकोश ग्रंथोमें गर्भगृहके २८ भाग करके अमुक विभागमें अमुक देव स्थापन करनेका कहते है -देवता मूर्ति प्रकरणम् और समराङ्गण
SR No.008427
Book TitlePrasad Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size5 MB
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