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________________ * प्रासादमसरी * ४२a ॥ सय कणिक अतर को सासका काम २ पीठिका सिंहासन उदय भाग ३० |3/२ २ प्रभाकर और यति ३ मुखलिङ्ग के प्रासादमें भिन्नदोष लगता नहीं परंतु दोष कहा हो या न कहा हो तो भी प्रासादमें स्वच्छता रखनी चाहिये । १५९ कहे हुए मान प्रमाणसे अधिक लम्बा चौडा अल्प या वक्र टेढा जो प्रासादमें होवे छंद भेद या जातिभेद या मान हीन होवे तो यह महान दोषका नाकाडगा उत्पादक है। १६० K..--भाग-.. __ अथ प्रतिमामान-१ गर्भगृहके द्वारको ऊंचाईके नौ भाग करके उनमें से उपरका भाग तज कर शेष आठ भागो के तीन भाग करके दो भागोकी खडी प्रतिमा और शेष एक भागकी पीठिका (सिंहासन) बनवाना । १६१ Vaat.ओ.यल. २ प्रतिमाका दुसरा प्रमाण-देवगृहके द्वारकी ऊंचाईके ३२ भाग करके जिनमें से चौदाह पंद्राह एवं सोला भागकी खडी प्रतिमाका प्रमाण जानना । और चौदाह तेराह एवं बाराह भाग की बैठी प्रतिमा का प्रमाण जानना १६२ प्रासादके चोरस क्षेत्रके दश भाग करके दो दो भागकी दीवारोंकी मोटाई जाननी। शेष छ भागका गर्भगृह जानना ! १६३ । उस गर्भगृहके तीसरे भागकी प्रतिमा का ज्येष्ठमान जानना। दसवां भाग कम करनेसे मध्यमान और पांचया भाग हीन करनेसे कनिष्ठ मान प्रतिमाका जानना ३३ १६४ (ये प्रतिपाका तीसरा मान) ३३ प्रतिमा प्रमाणका चोथामान-प्रासादके दो कर्ण तक का मापका चौथे भागकी प्रतिमा का प्रमाण जानना । शेषशायी-सुप्त प्रतिमाका प्रमाण कहते है । गर्भगृह के सात भाग करके उनमेंसे पांच भागकी शयन प्रतिमा लम्बी करनी । प्रतिमाका पांचवाँ प्रमाण-एक से पांच हाथ तक के प्रासादके लिये प्रत्येक गज छ छ आंगुल, छ से दश हाथ तक के प्रत्येक हस्ते तीन तीन आंगुल, ११ से ५० तक के प्रासादके लिये प्रत्येक हाथ एकक आंगुलकी वृद्धि करने से बैठी प्रतिमाका मान समजना। छठ्ठा प्रमाण खडी प्रतिमाका ११ आंगुल से एक हाथ के प्रासादके लिये ११ आंगुलकी खडी प्रतिमा चार हाथ तक प्रत्येक गज दश दश आँगुलकी वृद्धि
SR No.008427
Book TitlePrasad Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size5 MB
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