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________________ * प्रासादमञ्जरी 64 दो प्रतिरथ, और शेष दो भागका । इस प्रकार कुल नौ भाग हुए। इसी प्रकार मूल शिखरका उपाङ्ग वालंजर समजना । ९० ९१ अथ शुकनाश-प्रमाण प्रासाद के छज्जे मथाले से शिखरके स्कंध बांधणे तक की उंचाई के २१ भाग करना जिसमेंसे नौ, दश, ग्यारा, बारा, और तेराह भाग उदय इस प्रकार पंचविध शुकनाशके प्रमाण जाने२०। ९२ शिखरके शृंग उरुश्रृंग और प्रत्यङ्ग (चोथगराशिया) ये सब अंडककी गिनती संख्यामें ली जाती है, शेष तवज, तिलक, कर्ण या दुसरे उपाङ्गो पर चढाये जावें तो वे प्रासाद के भूषणरुप जानने । ९२ आमलसारे के विस्तारका दूसरा मान -शिखरके स्कंधका उपाङ्ग में आमना-सामना दो प्रतिरथ का कोण बराबर गोल वृत आमलसारे का विस्तार रखना (ये प्रमाण ओर छे भागके स्कंध के हिसाबसे सात भागका आमलसारा विस्तार । ये दोनों प्रमाण बराबर मीलता है। आमलसारे का विस्तार से अर्ध उदय मान जानना । ९३ INIK भुवई युक ____२० शुक नाशके प्रमाण में अन्य ग्रंथों में छज्जासे शिखर के स्कंध बांधणा तक की उंचाई का २१ भाग करके नौसे तेरह भाग तकका शुकनाश का स्थान रखने को कहा है। ये प्रासाद मंजरीकी एक प्रतिमें “ छाद्यातः स्कंधांत मेकद्विशा भक्तें दिक शिवांशकै । सूर्य विश्वांश शक्रे च छाद्योवें शुकनाशके ।। ८९ इस पाठमें परिवर्तन हो गया हो या कुछभी हो, परंतु २१ भागमें १०, ११, १२, १३, १४, भागे शुकनाशका स्थान कहा है. सूत्र. नाथुजीको यह पाठ कहां से मिला हो? शुकनासके बराबर मंडपका गुम्बज-या संवरणाकी घंटा आमलसारा समसूत्र में रखने यद्यपि मंडपका आमलसारा नीचे भी रखा जा सकता है।
SR No.008427
Book TitlePrasad Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size5 MB
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