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* Prasad Manjari *
सुवर्णका प्रासाद पुरुष-आमलसारेके उदर भाग में घृतपात्रके साथ सुवर्ण के प्रासाद पुरुषकी मूर्ति चांदीके ढोलिये पर सुलाकर पधराना ९४ ___ध्वजाधार स्थान २२-प्रासादके शिखरके पीठेके भागमें दाहिनी ओर के पढरेमें “ ध्वजाधार "स्तंभवेध-कलाबा ध्वजादंड खडा रखनेके सहारे के लिये लुम्बी बनाना । ९५
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२६ प्रासादके जीव स्थान म्वरुप सुवर्ण मय प्रासाद पुरुष । एक गजके प्रासादके प्रमाणसे आधे अंगुलका बनानेका विधान है । ५० गजके प्रासादके लिये २५ अंगुलका प्रासाद पुरुष धनाना उसकी आकृति-दाहिने हाथमें कमल एवं बांये हाथ में तीन शिखा वाली पताका ध्वजदंड सहित धारण किये हुए है (आकृति देखीये) इस सुवर्ण के प्रासाद पुरुषकी आकृति छाती पर हाथ रखे हुए होती है। आमलसारेमें घीके कलश पर चांदीके पलंग पर गद्दी व तकिये पर सुलाते हुए पधगना । इस प्रासाद पुरुषका स्वरुप पाषाण मूर्तिके रुपमें शिखाके पिछले दाहिने पढरेमें रखनेकी प्रथा लगभग १५० वर्षसे प्रचलित हुई है । ध्वजाधार कलाबाके स्थान पर इस आकृतिकी मूर्ति स्थापनेका यह प्रचलन उचित नहीं है।
२२ ध्वजाधार-स्तंभवेध (कलाबा) का स्थान शिखरकी मूल रेखाका उदय (पायचासे स्कंधतक) का चोविश भाग करके नीचेसे २१ इकीश घे भाग पर ध्वजाधार-स्तंभवेध-ध्वजादंड टेकाने का कलाबा शिखरके पीछले भागमें पढरे में बनाना ।
ध्वजादंडकी बाजुमें मजबुत आधार रुप काष्ठकी स्तंमिका आमलसारेकी बराबर उदयमें रग्बनी । ध्वजादंड के साथ स्तंभिका वनबंधो
शिखरके ध्वजा दड