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________________ रचनाकार महर्षि के प्रत्येक रचना में अनेकविध ग्रन्थों का चिन्तन मनन तथा परिशीलन है इसमें प्रकाण्ड पाण्डित्य प्रतिभा का झलक है। यह किसी भी साक्षर से अविदित नहीं है। भावी जिज्ञासुओं के बोध और उपकार की कामना से पूज्यपाद आचार्य देवजी अपने शारीरिक कमजोरी स्वास्थ्य आदि की परवाह किये बिना अनेक प्रकार शासन प्रभावना आदि शुभ कार्यों को करते हुये भी साथ २ न्यासानुसन्धान कार्य को शीघ्र परिपूर्ण करने हेतु अविरत प्रयत्न शाली रहे। इस प्रकार प्राचार्य देव श्री की अप्रमत्त ज्ञानदया प्राणी मात्र को भाव पूर्वक अभिवादन करने योग्य बनाती रही। इस प्रकार महान् बुद्धि वैभवी परमाराध्य आचार्य देव श्री के सर्वोपयोगी चिरस्थायी साहित्य के प्रकाशन करने का अमूल्य लाभ एवं ज्ञान सेवा में यत् किञ्चित् अवसर पाकर उनके विद्वान् शिष्य प्रशिष्य गण अपने को भाग्यशाली समझते हैं। परम पूज्य आचार्य देव के सब ग्रन्थों को पाठक वर्ग और जिज्ञासु विज्ञ महानुभावों ने जो सानन्द भावपूर्वक सत्कार तथा अभिनन्दन किया है उसी प्रकार अधिकाधिक उपयोग के साथ इसको भी अभिनन्दित करेंगे एवं हृदयङ्गम करके प्रसन्न होंगे ऐसी आशा है। परस्पराम्पह जीवादाम
SR No.008412
Book TitleSwopagnyashabda maharnavnyas Bruhannyasa Part 3 2 3
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorLavanyasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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