SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SIDEOHENDISATISATISHEDEEWERSEMEDISHMISSINESS प्रकाशकीय निवेदन श्री विजय नेमिसूरीश्वर ग्रन्थ-माला में ६२ रत्न स्वरूप श्री सिद्ध हेमचन्द्र शब्दानुशासन का न्यासानुसन्धान सहित वृहवृत्ति के तृतीयाऽध्यायान्तर्गत द्वितीयपादादिज्ञान जिज्ञासु महानुभावों के समक्ष इस भाग को उपस्थापित करता हुआ अत्यन्त आनन्द को प्राप्त कर रहा है। इसमें तृतीयाध्याय के द्वितीयपाद एवं तृतीपाद मात्र है। श्रीसिद्धहेमव्याकरण की भव्यता-विशिष्टता तथा प्रत्युपयोगिता सर्वत्र विदित है । इस प्रकरण में कहने योग्य विषय तृतीयाध्याय के प्रथम पाद को प्रापकी सेवा में उपस्थापन करते समय में ही वृहद् रूप से कहा गया है। अग्रिम सब अध्यायों के पठन-पाठन में उपयोगार्थ शीघ्राति-शीघ्र प्रकाशन हेतु प्रयास जारी है। यत्र-तत्र नगर के प्रसिद्ध प्रेस में प्रकाशन हेतु प्रारूप दिया हुआ है। कई भाग छप चुके हैं। पञ्चम अध्याय भी जोधपुर नगर के प्रसिद्ध कुम्भट प्रेस से प्रकाशित हो चुका है। यह तृतीय अध्याय यत्र-तत्र प्रेस में छपने पर मी अपूर्ण ही रहा जिसको हम आपके समक्ष सपित कर रहे हैं। इसके कुछ भाग बनारस भार्गव प्रेस में कुछ भाग जोधपुर के भूतपूर्व कुम्भट प्रिण्टर्स में तथा वर्तमान यह भाग प्रकाशप्रिण्टर्स जालोरीगेटमें छपाहै । इसमें तृतीय अध्याय के प्रथम, द्वितीय व तृतीय पाद मात्र है। चतुर्थ पाद काल कवलित हो गया है। पूज्यपाद प्रकाण्डपण्डित (इस गन्थ के लेखक ) सूरीश्वरजी की दिवंगतता के कारण वाध्य होकर खण्डित प्रन्थ ही उपस्थापित किया जाता है। इस प्रस्तुत अध्याय के भी शब्द महार्णव न्यास के सम्पूर्ण अनुसन्धान जगद्गुरु शासन-सम्राट् सूरि चक्र-चक्र वत्ति तपोगच्छाधिपति बाल-ब्रह्मचारी परमाराध्य परम-पूज्य आचार्य देवेश श्रीमद् विजय नेमिसूरिश्वरजी म. श्रीजी के पट्टालङ्कार व्याकरण वाचस्पति कविरत्न' शास्त्र विशारद साधिक सप्त लक्ष श्लोक प्रमाण नूतन संस्कृत साहित्य-सर्जक अनुपम-व्याख्यान सुधात्ति पूज्य-पाद आचार्य देव श्रीमद् विजय लावण्यसूरीश्वरजी महाराज ने किया है । तृतीय अध्याय में व्याकरण के समास प्रत्यय आदि मनोरम विषय का अनुसन्धान महर्षि श्री हेमचन्द्रजी ने अति सुन्दर ढंग से लिखा है, उसी के आधार पर सुन्दर सरल रसप्रद विशाल-काय यह पुस्तक है। इसमें सूक्ष्माति सूक्ष्म विषय को सरल प्राञ्जल रीति से वर्णन और चिन्तन है।
SR No.008412
Book TitleSwopagnyashabda maharnavnyas Bruhannyasa Part 3 2 3
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorLavanyasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy