________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
षड्द्रव्य - पंचास्तिकायवर्णन
न कुतश्चिदप्युत्पन्नो यस्मात् कार्यं न तेन सः सिद्धः । उत्पादयति न किंचिदपि कारणमपि तेन न स भवति ।। ३६ ।।
कहानजैनशास्त्रमाला ]
सिद्धस्य कार्यकारणभावनिरासोऽयम्।
यथा संसारी जीवो भावकर्मरूपयात्मपरिणामसंतत्या द्रव्यकर्मरूपया च पुद्गलपरिणामसंतत्या कारणभूतया तेन तेन देवमनुष्यतिर्यग्नारकरूपेण कार्यभूत उत्पद्यते न तथा सिद्धरूपेणापीति । सिद्धो ह्युभयकर्मक्षये स्वयमुत्पद्यमानो नान्यतः कुतश्चिदुत्पद्यत इति। यथैव च स एव संसारी भावकर्मरूपामात्मपरिणामसंततिं द्रव्यकर्मरूपां च पुद्गलपरिणामसंततिं कार्यभूतां कारणभूतत्वेन निर्वर्तयन् तानि तानि देवमनुष्यतिर्यग्नारकरूपाणि कार्याण्युत्पादयत्यात्मनो न तथा सिद्धरूपमपीति। सिद्धो ह्युभयकर्मक्षये स्वयमात्मानमुत्पादयन्नान्यत्किञ्चिदुत्पादयति ।। ३६ ।।
[ ६९
गाथा ३६
अन्वयार्थ:- [ यस्मात् सः सिद्धः ] वे सिद्ध [ कुतश्चित् अपि ] किसी [अन्य] कारणसे [ न उत्पन्नः] उत्पन्न नहीं होते [ तेन ] इसलिये [ कार्यं न ] कार्य नहीं हैं, और [ किंचित् अपि ] कुछ भी [ अन्य कार्यको ] [ न उत्पादयति] उत्पन्न नहीं करते [ तेन ] इसलिये [स: ] वे [ कारणम् अपि ] कारण भी [ न भवति ] नहीं हैं ।
टीका:- यह, सिद्धको कार्यकारणभाव होनेका निरास है [ अर्थात् सिद्धभगवानको कार्यपना और कारणपना होनेका निराकरण - खण्डन है ]।
जिस प्रकार संसारी जीव कारणभूत ऐसी भावकर्मरूप *आत्मपरिणामसंतति और द्रव्यकर्मरूप पुद्गलपरिणामसंतति द्वारा उन-उन देव - मनुष्य - तिर्यंच-नारकके रूपमें कार्यभूतरूपसे उत्पन्न होता है, उसी प्रकार सिद्धरूपसे भी उत्पन्न होता है-- ऐसा नहीं है; [ और ] सिद्ध [ - सिद्धभगवान ] वास्तवमें, दोनों कर्मों का क्षय होने पर, स्वयं [ सिद्धरूपसे ] उत्पन्न होते हुए अन्य किसी कारणसे [ - भावकर्मसे या द्रव्यकर्मसे ] उत्पन्न नहीं होते ।
पुनश्च जिस प्रकार वही संसारी [ जीव ] कारणभूत होकर कार्यभूत ऐसी भावकर्मरूप आत्मपरिणामसंतति और द्रव्यकर्मरूप पुद्गलपरिणामसंतति रचता हुआ कार्यभूत ऐसे वे-वे देवमनुष्य-तिर्यंच-नारकके रूप अपनेमें उत्पन्न करता है, उसी प्रकार सिद्धका रूप भी [ अपनेमें ] उत्पन्न करता है-- ऐसा नहीं है; [ और ] सिद्ध वास्तवमें, दोनों कर्मोंका क्षय होने पर, स्वयं अपनेको [सिद्धरूपसे ] उत्पन्न करते हुए अन्य कुछ भी [ भावद्रव्यकर्मस्वरूप अथवा देवादिस्वरूप कार्य ] उत्पन्न नहीं करते।। ३६।।
* आत्मपरिणामसंतति = आत्माके परिणामोंकी परम्परा ।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com